बुधवार, 6 जुलाई 2011

गणतंत्र के क्या मायने

इन्हें गणतंत्र के क्या मायने

जो खो दिये दिल के सपने

सभी को अपनी-अपनी रट लगी है

हमको तो जोरों की भूख लगी है

क्या अपने, क्या बेगाने

क्या किया तुम सबने

बीतने को सब बीत जाते हैं

हम गरीब किसी को याद न आते हैं

बाबू, सुभाष की यह जननी है

उन्हें तो सिर्फ पेट भरनी है

क्या होती है शहादत, क्या जाने

बदल गये इसके भी मायने

भूख, प्यास क्या तड़पन

है सिर्फ राजनीति की अड़चन

महंगायी, जमाखोरी की बात निराली

हो गयी सभी की जेब खाली

हर बात, हर काम में राजनीति है

नेताओं को वोटो से प्रीति है

आम जनता की परेशानियां वो क्या जाने

ऐसे में गणतंत्र के क्या मायने ।।

3 टिप्पणियाँ:

Arunesh c dave ने कहा…

आपका लेख आजके चर्चामंच की शोभा बढ़ा रहा है
धन्यवाद

shyam gupta ने कहा…

--सुन्दर भाव व विचार....


पेट भरनी है = पेट भरना है..

rubi sinha ने कहा…

सुन्दर भाव व विचार....

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