सोमवार, 4 जुलाई 2011

अब किस्से कहानियों में नहीं रहे खजाने !!

अफ़साने हकीकत में उतर रहे है . देश सोने की चिडिया था , इस बात का इल्म अब आम लोगो को होने लगा है . पद्मनाम स्वामी मंदिर के तहखाने खजाना उगल रहे है . पहली बार तिरुपति बालाजी का सोना कम लगने लगा है . फिल्म 'ममी'एक काल्पनिक कहानी थी परन्तु उसके खजाने की खोज का घटना क्रम बेहद प्रभावशाली बन पढ़ा था , खास तौर पर फिल्म के अंत में ध्वस्त होते पिरामिड और उसमे नष्ट होते खजाने के द्रश्य . ठीक इसी तरह ' निकोलस केज ' अभिनीत 'नेशनल ट्रेजर ' खजाने की खोज पर बनी शानदार फिल्म थी . वाल स्ट्रीट के कही नीचे दबा खजाना खोजना नायक के लिए एक तरह से अपने पिता के खोये सम्मान को पुनह स्थापित करने का प्रयास है . खलनायक और नायक की रस्साकसी के बीच पिता पुत्र के रिश्ते को मजबूत करती यह फिल्म जितनी बार देखो , बासी नहीं लगती है . फिल्म के अंत में सारे खजाने को सरकार के संरक्षण में जाते बताया गया है . पद्मनाम मंदिर के खजाने को लेकर भी कुछ इसी तरह की खबरे आना शुरू होगई है. अगर ऐसा होता है तो यह देश हित में होगा . फिल्म उपकार में मनोज कुमार पर फिल्माया गीत ....मेरे देश की धरती सोना उगले ...चरितार्थ हो रहा है . जेसा मेने शुरुआत में कहा- कहानिया हकीकत में उतर रही है .


6 टिप्पणियाँ:

योगेन्द्र पाल ने कहा…

सरकार के संरक्षण में जब देश ही सुरक्षित नहीं है तो देश का खजाना कैसे सुरक्षित होगा?

आज कम से कम यह खजाना हमारे देश में तो है सरकारी संरक्षण में जाते ही इसको स्विस बैंक में पहुँचते देर नहीं लगेगी

shyam gupta ने कहा…

मेरे देश की धरती सोना उगले ...चरितार्थ हो रहा है . जेसा मेने शुरुआत में कहा- कहानिया हकीकत में उतर रही है
---गलत उदाहरण है....अच्छे तथ्य को ऋणत्मकता में देना अनुचित है...शायद आपको मुहावरे व गाने के अर्थ समझ में नहीं आये....

शिखा कौशिक ने कहा…

vicharniy aalekh likha hai aapne.aasha kabhi nahi chhodni chahiye ye bhi to kaha gaya hai ki vo subah kanhi to aayegi.aajkal iski aahat to sunai dene hi lagi hai.aabhar.

हरीश सिंह ने कहा…

निश्चित रूप से कहानिया सिर्फ कल्पना नहीं है. इनके पीछे सच्चाई भी है. इस घटना ने भारत के इतिहास का स्वर्णिम दिन याद दिलाया है. वास्तव में हमारा देश सोने की चिड़िया था है और रहेगा, बस इसे लुटेरो से बचाना होगा.

निर्मला कपिला ने कहा…

हमारे वेड पुराण गलत नही है बस आज क्4ए साधू सन्तों ने हमे उनसे दूर कर्5 दिया है। उनके अपने अपने हिसाब से ग्रन्थ बन गये मान्यतायें बदल गयी , अब त्याग की जगह सन्त ऐश आराम करते हैं। और उनके खजाने जनता की गरीबी के बावज़ूद भर रहे हैं। अच्छा रहता ये खजाना छुपा ही रहता अब न नेताओं से महफूज़ रहेगा न सन्तों से।

हरीश सिंह ने कहा…

निर्मला जी सटीक बात कही आपने

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