Bezaban: महिलाओं को दैहिक स्तर पर देखने की मानसिकता और महिल...: "महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं अतनी आम हो गयी हैं की आज किसी भी दिन के अखबार को उठा लें २-४ खबरें तो मिल ही जाएंगे. इसके बहुत से कारण है..."
बुधवार, 27 जुलाई 2011
Bezaban: महिलाओं को दैहिक स्तर पर देखने की मानसिकता और महिल...
7/27/2011 10:14:00 am
S.M.Masoom
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----इतने व्यापक..विषय पर ..वोट प्रथा लगाने से उत्तर व विचार सीमित होजाते हैं एवं लेखक के ही कुछ स्वभूत विचारों से सहमत होने की सीमितता होजाती है ..यह अनुचित है....
---यहाँ सहयोग शब्द का प्रयोग गलत व अनुचित है ... निश्चय ही अधिकाँश मामालों में महिलाओं की नादानियां, गलतियाँ , अज्ञान व अधिक स्मार्ट व शो-पीस बनने के चक्कर में यह होता है ...परन्तु इसे सहयोग नहीं कहा जासकता....
अव्वल तो महिला के साथ बलात्कार हो ही नहीं सकता, यदि होता भी है तो तभी जब सामूहिक रूप से हो, अकेला पुरुष तो बलात्कार कर ही नहीं सकता, हम महिला की बात करते हैं, एक कुतिया भी बलात्कार होने नहीं देती, बिना सहमति के संसर्ग हो ही नहीं सकता, बलात्कार के अधिसंख्य मामलों में सहमति ही पाई जाती है, पहले महिला संसर्ग को राजी होती है और जब पकडी जाती है तो आरोप जड देती है, यह एक कडवी सच्चाई है, रहा सवाल डॉ गुप्ता जी की बात का तो सहयोग बिलकुल सही शब्द है, हर महिला या युवती जानती है कि वे क्या कर रही है, उसे अबोध नहीं माना जा सकता, मैं इतनी सारी बात इसलिए कर पा रहा हूं कि मैं अजमेर से हूं और अजमेर बहुचर्चित ब्लैकमेल कांड का गवाह रहा है
----तेजवानी जी...बलात्कार कहा ही उसे जायगा जो महिला से जबरदस्ती किया जाय , उसकी अनुमति के बिना या उसकी नादानी,अज्ञान आदि का लाभ उठाकर, भरमाकर उसकी सहमति से....अतः निश्चय ही इसे सहयोग नहीं कहा जायगा...
--- जो महिला स्वेच्छा( सहयोग ) से संसर्ग को राजी होती है फिर पकड़ी जाने पर आरोप लगाती है...वे मामले अधिकाँश प्रकाश में आजाते हैं ..और बलात्कार की श्रेणी में नहीं आ पाते ...हाँ प्रशासन की अक्षमता व व्यक्ति/ समाज विशेष के स्व-रूचि व आपराधिक रूचि के कारण भले ही उसे कुछ भी नाम् देदिया जाय....
---यह विषय व मामले ही इस शीर्षक के अंतर्गत नहीं आते....
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