बुधवार, 1 जून 2011

जूही-इरफ़ान प्रेमकथा : ना जन्म का हो बंधन-1

जुलाई का महिना ,अरुणोदय की बेला में सूर्यदेव अपनी प्रखर रश्मियों को धीरे धीरे फैला रहे थे...हरप्रीत आंटी ने बालकनी में झाड़ू लगते हुए  जूही को आवाज दी..जूही बेटा जरा देख तो इतनी सुबह सुबह कौन कालबेल बजा रहा है...."शायद दूधवाला होगा" कहते हुए उनींदी सी जूही,जिसके अभी यौवन में कदम ही रखा था,अपने अस्त व्यस्त कपड़ों और अधखुले  केशों को ठीक करती दरवाजे की और बढ़ी..
दरवाजा खोलते ही अचानक एक २५-२७ वर्षीय नौजवान को अपने सामने देखकर अचकचाते हुए उसका ध्यान अपने दुपट्टे पर गया जो शायद जल्दबाजी में बिस्तर में ही रह गया था..

"किससे मिलना है आप को??" दरवाजे के पीछे जा कर दुपट्टे की कमी को पूरा करते हुए जूही ने पूछा...मानो ऐसा प्रतीत हुआ की वो युवक  जूही के निश्चल सौन्दर्य के वशीभूत  हो कर बिना कुछ सुने उसे एकटक निहार रहा है...उसकी इस अवस्था पर जूही को झुंझलाहट हुई मगर उम्र की इस अवस्था में ऐसे घटनाओं से दो-चार होने पर नारी सुलभ बृत्ति के कारण अंतर्मन में एक हलकी सी ख़ुशी की अनुभूति हर नवयौवना को होती है.
" कौन है बेटा" हरप्रीत आंटी की आवाज ने शायद तन्द्रा को तोडा ..इससे पहले की जूही कुछ जबाब देती..हरप्रीत आंटी दरवाजे तक आ चुकी थी..."क्या बात है बेटा ,किससे मिलना है??" हरप्रीत आंटी ने पूछा..
ज जी ,जी मेरा नाम असलम है ,मुझे सादिक भाई से मिलना है ..फोकल प्वाईंट,23 /69  ,लुधियाना ...यही पता है न...." नवयुवक ने थोडा हकलाते हुए कहा"
ये मुए कालोनी के मुंडे जब देखो तब बोर्ड उल्टा कर देते हैं...बेटा वही सादिक  न जो पिछले महीने मेरठ से यहाँ शिफ्ट हुए हैं...." हरप्रीत आंटी  ने प्रश्नवाचक दृष्टी से  पूछा...
"हाँ वही" ..असलम का संछिप्त सा जबाब,इन सबके बिच रह रह कर वो जूही को कनखियों से देखने का अपना स्वाभाविक पुरुषोचित गुण या लोभ पर नियंत्रण नहीं रख पा रहा था..
बड़े भले आदमी हैं ..बेटा सामने हमारे ठीक सामने वाली सफ़ेद मकान में चले जाओ..वही सादिक  रहते हैं.. "हरप्रीत आंटी ने कहा"
जी शुक्रिया " सादिक  ने अपना ध्यान न चाहते हुए जूही से हटाकर हरप्रीत आंटी की ओर करते हुए कहा,और सफ़ेद मकान की और रुख किया.....
चलो जूही, तेरी दीदी आने वाली हैं ,छोटी बहन को भी हस्पताल ले जाना है..जल्दी नहा कर तैयार हो जाओ...बहुत काम  बाकी है.." हरप्रीत आंटी ने किचन की और जाते हुए कहा...
" हरप्रीत आंटी..यही नाम था आस पड़ोस में उनका..वात्सल्य एवं ममता से भरपूर..कहीं किसी जानवर को भी पीड़ा में देखा तो घर ले आती..सेवा सुश्रुना करती ...इनके पति सेना में उच्चाधिकारी थे..कश्मीर की पोस्टिंग के समय एक मस्जिद में बम रखे होने की खबर सुनकर,कार्यवाही में गए, सभी नमाजी भाइयों को बाहर निकालकर, बम को निष्क्रिय कर के बड़ा अनिष्ट टाल दिया,मगर वहां के कुछ स्थानीय कट्टर लोगों को ये मस्जिद का अपमान लगा की काफ़िर ने स्थल को अपवित्र किया और अगले दिन उनके सुरक्षा में लगे एक सिपाही ने भरी बंदूक की सारी गोलिया,सोते समय उनके शरीर में उतार दी और हरप्रीत आंटी इस दुनिया में अपनी ३ जवान बेटियों के साथ अकेले  रह गयीं ...."

बड़ी बेटी का नाम "ख़ुशी" उसका विवाह  पिछले साल हरप्रीत आंटी ने एक स्थानीय अध्यापक से कर दिया...बिच वाली "जूही" जो अभी १८ साल की थी और उससे छोटी "जसलीन".......जसलीन को एक बीमारी थी जिसे डाक्टर "मार्टिन बेल सिंड्रोम" कहते है..मतलब शारीरिक आयु से मानसिक आयु का कम होना...अब जसलीन की उम्र १६ साल और ब्यवहार १० साल के बच्ची जैसा.." खैर जैसे तैसे हरप्रीत आंटी इन सारे दुखों को समेटे हुए जीवनपथ पर आगे बढ़ रही थी ..यद्यपि कर्नल साहब की कमी हर वक़्त खटकती थी मगर इन बच्चियों में उनका अंश देख  कर खुद को हर बार मजबूत रखने में सक्षम पाती थी..
आज सुबह से हरप्रीत आंटी के घर में चहल पहल थी बड़े दामाद और बेटी आई हुए थी.."जूही" भी आज बहनों के साथ ऐसे अठखेलिया कर रही थी जैसे उनके बचपन का समय वापस आ गया है जब कर्नल साहब आतंकवाद की भेट नहीं चढ़े थे..और हर शाम वो आर्मी आफिसर्स कालोनी के पार्क में लुक्का  छिपी खेला करती थी...
तभी टेलीफ़ोन घनघनाया.."ट्रिन ट्रिन ट्रिन ट्रिन" ..हेल्लो हरप्रीत आंटी ने टेलीफ़ोन उठाते हुए कहा....हेल्लो हेल्लो दूसरी तरफ से एक असपष्ट सी आवाज सुनाई दी... कल रात की आंधी से लाइन  में बहुत खर्र खर्र का शोर हो रहा है...आप जरा ९८११८७****(जूही का मोबाइल नंबर) पर काल करें.....ये कहकर हरप्रीत आंटी किचन की में उबलते चाय की ओर बढ़ी..
थोड़े देर बाद जूही के नंबर पर ९८६१******(असलम का नंबर) से कॉल आई.."हेल्लो" जूही ने मोबाइल की कॉल का जबाब  देते हुए कहा...सलाम वालेकुम आंटी मैं  असलम बोल रहा हूँ सादिक  भाई जान के घर से ..अगले हफ्ते ईद पर एक छोटा सा प्रोग्राम है सोचा सभी मोहल्ले वालों को बुला लूँ ,सबसे दुआ सलाम,जान पहचान  भी हो जाएगी....आप भी तशरीफ़ लाये सभी लोगों के साथ..
मैं "जूही" बोल रही हूँ आंटी नहीं..."जूही ने बिना को चेहरे पर भाव लाये कहा"...
अच्छा "जूही जी" आप वो "खुबसूरत मोहतरमा" जिनसे पहले दिन मुलाकात हुई  थी..... " असलम की आवाज दूसरी तरफ से आई'
जैसा की हम सब जानते हैं ५ साल से ८५ साल की औरत की कमजोरी है उसके सौंदर्य की प्रसंशा....."खुबसूरत मोहतरमा " विश्लेषण जूही को मन ही मन अच्छा लगा ..मगर नारी सुलभ संस्कार के कारण उसने बात का रुख मोड़ते हुए कहा की, "ठीक है मम्मी को बता दूंगी वो आ जाएँगी..."
तुम भी आना " असलम ने बिना कोई मौका देते हुए कहा".... "जूही जी" से "तुम" शब्द तक आने में असलम को सिर्फ १५ सेकेण्ड लगे थे..." जूही ने बिना किसी उत्तर के फ़ोन काट दिया.......
किसका फ़ोन था ..हरप्रीत आंटी ने किचन से आवाज  दिया...ज जी सादिक जी के यहाँ से किसी असलम का वो ईद की दावत पर बुला रहें हैं सबको..." जूही ने असलम नाम से अनजान  बनते हुए कहा..."
अरे ये वही लड़का होगा जो पहले दिन रास्ता भटककर हमारे घर आ गया था....ठीक है एक कम करो शर्मा जी और चावला जी के साथ साथ  आज "ख़ुशी" की विवाह की सालगिरह के पार्टी में सादिक  भाई और उस  लड़के को भी बुला लो....
जूही ने अपने मोबाईल से कॉल लगाया..अब तक ९८६१****** (असलम का नंबर) मोबाईल नंबर ASLAM @sadik नाम से सेव हो चूका था जूही के मोबाईल में....
असलम ने फ़ोन उठाते हुए कहा हा जूही बोलो मैं अभी तुम्हारे ही बारे में सोच रहा था...जूही ने पुनः बात बदलते हुए शाम का आमंत्रण दे कर असलम की उम्मीदों पर तुषारापात कर दिया...
शाम को इत्र और अन्य सौंदर्य प्रसाधनो का लेपन कर असलम सादिक  भाई के पीछे पीछे पहुचे हरप्रीत आंटी के घर... माशा अल्ला असलम मिया थे भी, गबरू जवान ,जिन के मोह में कोई भी कुवारी कन्या फिसल जाए फिर जूही के यौवन ने तो अभी अंगडाईयां लेना शुरू किया था..सादिक भाई पांच टाइम  के नमाजी उन्हें क्या पता की कुरान पवित्र  की शिक्षा लेने आया ये बालक किस मकसद से यहाँ है...शाम को खाने में असलम मियां की पसंद थी कबाब और साथ में खिलाने वाली "जूही" ...
खैर पार्टी ख़तम हुए और असलम जूही की बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ.....जल्दी ही ASLAM @ANWAR से सिर्फ असलम हो गया ..और कुछ दिनों बाद असलम मिया ने जूही को मिलने बुलाया ....घंटाघर के पास वाले रेस्तरां में ...जूही ने थोडा ना नुकुर की तो अपनी जुम्मा जुम्मा ३ महीने पुरानी दोस्ती की कसमें देकर असलम  ने मना ही लिया ...
सिर्फ १५ मिनट के लिए आई हूँ घर से झूठ बोलकर बोलो क्या बात है??? "रेस्तरां में असलम से जूही ने कहा...
आज पहली बार किसी अनजान(हालाकि असलम अब असलम अनजान नहीं था) लड़के ने जूही का हाथ पकड़ा था..स्त्रियों के अन्दर की छठी इन्द्री होती है जो, इन्सान उसे किस भाव से छु रहा है या देख रहा है, वो भांप  लेती हैं..शायद इसलिए असलम  को दूर हटाते हुए जूही ने कहा तुम्हे क्या कहना है, जल्दी बताओ, नहीं तो मैं जा रही हूँ...
जूही मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ ....कल शाम  को मेरे घर आ जाना बाकि बातें वही बता दूंगा..जूही मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकता...
जूही ने रेस्त्रा से निकलते हुए बोला बिलकुल नहीं आउंगी जो सोच रहे हो वो संभव भी नहीं है....ये ख्याल भूल जाओ असलम ...
अगर तुम नहीं आई तो तुम्हारा नाम अपने खून से लिख कर ख़ुदकुशी कर लूँगा जूही...इसे धमकी नहीं मत समझना ये एक सच्चे आशिक की आशिकी है.....कहते हुए असलम अपनी आँखों में आंसुओं की कुछ बूंदों को समेटने का असफल प्रयास करते हुए चला गया....
रात को जूही को असलम  का आंसुओं से भरा चेहरा बार बार याद आता .....मोबाइल भी बंद है उसका...किसी अनहोनी की आशंका का कारण बनने की परिकल्पना से ही,जूही की अंतरात्मा कांप उठी...जैसे तैसे सुबह हुई.. मगर उसका ध्यान सामने वाले सादिक भाई   के सफ़ेद घर से आती हुए आहट  और आवाजों पर लगा था..दोपहर में सादिक भाई की आवाज आई.. असलम क्या कर रहे हो??जरा तोते का पिंजरा बाहर ले आओ...असलम को बाहर लान में देख जूही की जान में जान आई..मगर ये क्या ..जूही आज असलम के लिए रात भर सोयी नहीं...कहीं उस नौयौवना के ह्रदय में असलम  के प्रेम का बिज अंकुरित तो नहीं हो रहा............नहीं नहीं ऐसा नहीं है मन ही मन खुद को जूही ने समझाया..
तभी असलम का एस. एम. एस. आता है की शाम को ५ बजे घर आ जाओ नहीं तो मैं अपनी कसम पूरी कर के दिखा दूंगा...फिर मोबाईल आफ..अब जूही के सामने फिर वही रात वाली परिस्थिति खड़ी हो गयी..इसी उधेड़बुन में ४ बज गए ओर उसने देखा की सादिक भाई अपनी जीप ले कर कही निकल रहे हैं जाते जाते असलम से चिल्लाते हुए कहे जा रहें की रात को काउन्सिल के मीटिंग में  थोडा देर हो जाएगी..
आखिर कर जूही ने एक बार असलम को घर पे जा के समझाने का निर्णय लिया...चूकी असलम का मोबाइल आफ था तो बात करने की कोई गूंजाइस ही नहीं  थी...
जैसे ही घर के दरवाजे तक जूही  गयी ...."कहा जा रही हो जूही"  हरप्रीत आंटी की आवाज ने उसका ध्यान अपनी और खिंचा..."कहा जाता है ना की, हर मुसीबत  से पहले भगवान किसी न किसी रूप में आप को रोकते हैं...शायद  हरप्रीत आंटी की आवाज इश्वर के वाहक के रूप में आई थी........मगर " विनाशकाले विपरीतबुद्धि " जूही ने कहा पार्लर जा के आती हूँ मम्मी ...." हरप्रीत आंटी ने ज्यादा टोका टाकी नहीं की ओर कहा ठीक है जल्दी आना..."
अब जूही धडकते दिल और आने वाली परिस्थितियों की उधेड़बुन में चलती हुए सादिक  भाई के घर तक पहुची,काल बेल बजाते ही असलम ने तुरंत दरवाजा खोला मानो वो उसका इंतजार ही कर रहा हो दरवाजे पर...
" बोलो ये क्या मजाक है तुमने मुझे अब क्या कहने को बुलाया है..ये मरने वरने की धमकी क्यों दे रहे हो...जो तुम सोच रहे हो वो संभव नहीं है..मेरी माँ के ऊपर बहुत जिम्मेदारियां हैं "....जूही ने एक साँस में सारी भड़ास उड़ेल दी...
असलम जो अब तक ख़ुदकुशी की धमकियाँ दे रहा था ,शांतचित्त, मुस्कराते हुए बोला ठीक है जैसी तुम्हारी मर्जी..मगर मैं  इश्क  तुमसे ही करता रहूँगा ताउम्र.....अब आ ही गयी हो तो आखिरी बार मेरे हाथों का बना कुछ खा के जाओ मैं समझूंगा मेरा इश्क  कुबूल हुआ.. अल्लाह ने तुम्हारी नेमत बस इतने दिनों के लिए ही बख्शी  थी.....शायद आखिरी के शब्द बोलते बोलते असलम की आँखों में आसू आ गए ओर वो बिना जूही की मर्जी जाने कुछ खाने के लिए लाने चला गया...
खाने की मेज पर अब घर की बनायीं हुए नमकीन ओर  कोल्ड ड्रिंक का गिलास था...
असलम तुमने आज तक ये नहीं बताया की तुम यहाँ करने क्या आये हो..."कोल्ड ड्रिंक का गिलास होठो से लगाते हुए जूही ने कहा.."
आया तो था सादिक  भाई से कुरान की शिक्षा लेने मगर इश्क  से बड़ी नेमत क्या है अल्लाह की...मक्का मदीना सब सिख लिया तुमसे मिलने के बाद...." असलम ने कहा'
ओह इतना प्यार करता है मुझे ......मन ही मन जूही ने सोचा....... कोल्ड ड्रिंक का खाली गिलास मेज पर रखते हुए जूही ने कहा..
" मैं चलती हूँ  अब असलम अपना खयाला रखना ...शायद मेरे सर में दर्द हो रहा है और नींद सी आ रही है.." 
अरे ये नमकीन मैंने अपने हाथों से बनाये हैं एक बार खा तो लो कम से कम ये कहते हुए असलम ने जूही का हाथ  पकड़ कर सोफे पर खीचते हुए अपने हाथों में नमकीन का एक टुकड़ा ले कर उसके होठो पर रख दिया...इन सबके  बिच जूही को पता ही नहीं चला की वो कब असलम के बाँहों में आ चूकी है....
ये क्या कर रहे हो छोड़ो मुझे असलम............मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ.....कहते हुए असलम ने जूही को अपने भुजपाश में जकड लिया....अब तक कोल्डड्रिंक में मिली हुए गोली असर कर चूकी थी.....घर का एकांत वातावरण ...एक जवान लड़की..ओर एक  नौजवान के बाँहों में ...और नशीली दवा का असर ....लाज का एक झीना सा आवरण जो जूही या जूही जैसी किसी भी नवयुवती के  व्यक्तित्व और आचरण की पहरेदारी करता था ...हट चुका था.... शायद असलम को लुधियाना आने का अभीष्ट हासिल हो चुका था.......

अचानक जूही की नींद खुली तो ८ बज चके थे उसके बगल में असलम सोया हुआ था..स्तब्ध जूही ने अपने फर्श पर बिखरे कपड़ों में अपना तार तार होते चरित्र और व्यक्तित्व  की परिकल्पना कर ली और बिस्तर पर  फैला खून आंसुओं की शक्ल में अब आने वाले जीवन की एक भयावह कहानी लिखने वाला था.....


इस प्यार के पहले अध्याय की परिणिति हो चुकी थी..मगर कुछ शेष था ...


क्या हुआ आगे जूही के साथ ,उसकी माँ के साथ ,असलम ने क्यों किया ऐसा ,उसकी बहन के साथ क्या हुआ ...अगले चरण में 

यह धारावाहिक  आशुतोष जी ने यहाँ शुरू किया है.

1 टिप्पणियाँ:

हरीश सिंह ने कहा…

दूसरी किस्त का इंतजार

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