क्या जरूरत है हमें तोप की - तलवार की
जंग लडनी है हमें तो नफरतों पर प्यार की .
इसमें हर इन्सान के दिल से मिटाने है गिले ;
बंद हो अब साजिशें अपनों के क़त्ल-ओ-आम की .
क्या जरूरत ....
है बहुत मुमकिन की हम हार जाएँ जंग में ;
ये घडी है सब्र की और इम्तिहान की .
क्या जरूरत ....
कल हमें काटा था उसने ;आज हम काटें उसे
छोड़ दो ये जिद जरा कीमत तो समझो जान की .
क्या जरूरत .....
शिखा कौशिक
9 टिप्पणियाँ:
कल हमें काटा था उसने ;आज हम काटें उसे
छोड़ दो ये जिद जरा कीमत तो समझो जान की
bahut achchha v sarthak sandesh de rahi hai aapki kavita par dukh to isi bt ka hai ki aaj koi bhi is sujhav par amal nahi kar raha hai aur jise dekho vah mar kat par utaroo hai.
कीमत तो समझो जान की .वाह ...--सुन्दर गज़ल
बहुत सुंदर संदेश देती कविता !
बहुत सुंदर संदेश देती कविता !
jarurat padne par top talwar bhi uthane chahiye.
Kirti ji top talwar se kisi samasya ka samadhan nahi nikalta .ant me samvad se hi samjhaute hote hain .
आपकी इस ग़ज़ल के लिए कोई भी तारीफ छोटी है...बहुत खूब लिखा है आपने...हर्फ़ और सोच दोनों ही बहुत उम्दा...
मन को छू लिया बहुत सुन्दर………
---शिखा जी ..कीर्ति जी ने सही कहा...अंत में संवाद के लिए भी पृष्ठ-भूमि बनाने के लिए बहुत बार तोप-तलवार उठानी पडती है ..
" विनय न मानत जलधि जड़, गए तीन दिन बीत" ---जब राम ने धनुष उठा लिया तभी समुद्र ने प्रकट होकर संवाद किया ....
---तोप -तलवार .. विपक्षी को संबाद पर मजबूर करती है...
बहुत सुंदर संदेश देती कविता !
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