सोमवार, 27 जून 2011

प्रेम काव्य-महाकाव्य.. षष्ठ सुमनान्जलि--रस श्रृंगार -----डा श्याम गुप्त



4 टिप्पणियाँ:

ana ने कहा…

tarif ke liye shabd nahi hai.....atyant sumadhur geetkavya

virendra sharma ने कहा…

जाने नयनों ने नयनों से क्या कह दिया ,
रूप पुलकित धवल चांदनी हो गया .बेहतरीन श्रृंगार-इक रचना -ये नयनों का मांजरा ही ऐसा है -
तनिक कंकरी परत नैन होत बे -चैन ,
उन नैनं की क्या दशा जिन नैनं में नैन ।

shyam gupta ने कहा…

वाह वाह .....वीरू भाई ..क्या बात है....

भरे भौन में करत हैं नैनन ही सौं बात ...

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद अनाजी ...तारीफ़ उस खुदा की....

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