गुरुवार, 9 जून 2011

आर.एस.एस. करकरे की तरह बाबा रामदेव को भी मरवाना चाहती थी.


आर एस एस की सलाह पर अंधविश्वाश करते हुए अध्-खिलाड़ी बाबा रामदेव यादव ने जो अति-आत्मविश्वाश दिखने की चेष्टा की उसके पीछे आर एस एस का ही हाथ है क्यूंकि रामदेव को बलि का बकरा बना कर RSS सत्ता पर पुनः पहुंचना चाहती है. उन्हें भगवाधारी एक ईमानदार टाईप का व्यक्ति चाहिए था और एक ईमानदार नेता टाईप व्यक्ति चाहिए था. तो अन्ना और रामदेव से बेहतर कौन हो सकता था. सो RSS ने बाबा और अन्ना का जो इस्तेमाल किया वह आम जनता में लोकप्रिय भी रहा और जनता ने उन्हें हांथों हाँथ लिया भी. बीजेपी अथवा RSS को इससे मतलब नहीं है कि भष्टाचार ख़त्म हो अथवा नहीं और न ही कला धन आये अथवा नहीं बल्कि वह किसी भी क़ीमत पर 'नौ सौ चूहे खा कर बिल्ली हज को चली' को चरितार्थ करते हुए आम जनता में अपनी छवि को भला बनाते हुए आगामी चुनावों में सत्ता हासिल करने का घिनौना षड्यंत्र करने में पूरी तरह से व्यस्त है और वह इसके लिए कुछ भी करने को राज़ी है.

ज़रा सोचिये कि भले मानुस की तरह बाबा रामदेव यादव योग सिखा रहे थे चलो भैया दवा भी बेच रहे थे तो अब उन्हें राजनीति का कीड़ा किसने कटवा दिया जो वो अपनी औक़ात को भूल गए. आखिर उनके पीछे कौन कौन है जो उन्हें नचा रहे हैं. कल का बयान भी उनका देश द्रोहियों वाला था कि वे अपनी सेना बनायेंगे और अगली मर्तबा किसी भी अनशन अथवा शिविर में पुलिस आती है तो उनका हथियारों से लैस होकर मुक़ाबला करेंगे. वे अभी भी RSS के तर्ज पे और उनकी सलाह पे बयान पे बयान दे रहे हैं.

बाबा रामदेव अगर रामलीला मैदान में हलाक हो जाते तो किसको सबसे ज्यादा फायेदा पहुँचता? हाँ, सही सोचा आपने...! बीजेपी को ! आर एस एस अथवा बीजेपी ने उनकी हत्या की पूरी साजिश कर रखी थी. बाबा का पूरा प्लान फिक्स था. सुबोधकांत सहाय जो कि पहले भाजपा सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं के साथ कपिल सिब्बल समेत तीन मंत्री भी थे. इधर बाबा को अपनी मौत नज़दीक आते देख भागना ही पड़ा वरना देश में जोश भरने वाला एक बाबा उर्फ़ नेता मामूली सपाई कार्यकर्ता से भी गया गुज़रा निकल गया और भाग निकला वो भी औरतों के कपडे पहन कर. वैसे बाबा का भागना ज़रूरी था क्यूंकि आरएसएस के छिपे हुए लोग उन्हें मार ही डालते.

4 टिप्पणियाँ:

Durga Datt Chaubey ने कहा…

क्या आप बता सकते हैं हम (हमारा देश, जिसमें भारत, पाकिस्तान और बंग्लादेश शामिल हैं) पिछड़े क्यों रह गए हैं क्योंकि हम न तो शुरुआत करते हैं न किसी के द्वारा की गई शुरुआत को हज़म कर पाते हैं। यदि हमारे देश में कोई रेल गाड़ी की संकल्पना पर सोच रहा होता तो क्या वह कर सकता था? कभी नहीं। हम तो पिछली कई शताब्दियोँ से नकलची बंदर की तरह हो कर रह गए हैं जिसे जो चाहे पाल ले और अपने जैसा बना ले। ऐसे में जब कोई अलग निकल जाता है तो यह बात हमें हज़म ही नहीं होती। इसके लिए बेचारे रामदेव क्या कर सकते हैं?

shyam gupta ने कहा…

भागने पर ओब्जेक्शन भी और जरूरी भी .....पूरी तरह से भ्रमित है लेखक एवं एकनेत्री है...अभिव्यक्ति ने सही कहा...

तेजवानी गिरधर ने कहा…

मैं लेखक मित्र की इस जानकारी को तो समझ नहीं पाया कि उनको रामलीला मैदान के अंदर की रामलीला का कैसे पता लगा, लेकिन बाबा नौटंकीबाज है, ऐसी जरूर मेरी मान्यता है, रहा सवाल अभिव्यक्ति जी का तो ऐसी आदर्शवादी बातों से धरातली के सच से आंख मूंदना ठीक नहीं है

आशुतोष की कलम ने कहा…

आज सुबह डा.सुब्रमण्यम स्वामी ने देहरादून में ये आरोप लगाया की इधर देश में कोहराम मचा है और राजमाता सोनिया जी और युवराज पिछले चार दिन से switzerland में बैठे हैं ................पिछले कुछ सालों में उन्होंने बहुत बड़े बड़े ....विशालकाय घोटाले खोजे हैं ....उनपे बड़ी व्यापक खोजबीन की है ......अब इतनी बड़ी बात कह दी उन्होंने आज सुबह .........आरोप लगाया की दोनों माँ बेटा switzerland गए हैं अपने खातों की देखरेख करने .........पूरे देश में आम आदमी ये बात खुल कर कहता है और मानता है की प्रधानमन्त्री श्री मनमोहन सिंह जी व्यक्तिगत रूप से बेहद इमानदार होते हुए भी भ्रष्टाचार एवं काले धन पर कोई प्रभावी कदम इसलिए नहीं उठा पा रहे क्योंकि कांग्रेस के बड़े नेता गण......( गाँधी परिवार समेत ) की गर्दन सबसे पहले नप जाएगी ........अब ऐसे माहौल में आज कोढ़ में खाज हो गयी ....कमबख्त ..........मुए स्वामी ने इतनी बड़ी बात कह दी किसी एक चैनल पर ............अब हमारे जैसे लोग चिपक गए भैया टीवी से ...वैसे भी हम लोग चिपके ही रहते हैं ........पर वाह ....क्या बात है .......किसी भी माई के लाल हमारे न्यूज़ चैनल ने उस बयान को दुबारा नहीं दिखाया ....खोज बीन करना....बाल की खाल निकालना तो दूर की बात है ........सारा दिन टीवी पर surfing करने के बाद ( हांलाकि न्यूज़ तो अब भी चल रही है ) शाम को हमने इन्टरनेट पर गोते लगाए ........सारी न्यूज़ खोज मारी ..........कहीं तो कुछ निकलेगा .......कहीं तो कोई चर्चा होगी ...किसी ने डॉ स्वामी को quote ही किया होगा ...कहीं से कोई खंडन ही आया होगा ..........अब हम क्या जानें दिल्ली में कौन क्या कर रहा है ....पर दिल्ली वाले तो जानते हैं की कहाँ हैं सोनिया जी ....कहाँ हैं अपने राहुल बाबा .....और इन मीडिया वालों के लिए तो ये एक मिनट का काम है .....एक फोन मारा और ये लो .....हो गयी पुष्टि ....या ये रहा खंडन ..........पर कुछ नहीं ....शांति ...एकदम मरघट वाली शांति है आज ........न पुष्टि.... न खंडन ............
पर दोस्तों .....मरघट की ये शांति .......चीख चीख कर कुछ कह रही है ..............ध्यान से सुनिए .....दूर वहां कोई रो रहा है .........किसी की मौत पर .....पर मुझे सचमुच विश्वास नहीं होता की वो मर गया ..........इतनी आसानी से मरने वाला वो था तो नहीं ....बड़ी सख्त जान था कमबख्त .......क्या वाकई मर गया ...खबरनवीस ............न कोई आवाज़ न हलचल ........माजरा क्या है .....
आज सुबह एक लेख लिखा मैंने की कैसे सरकार हमारे मूल अधिकारों को कुचल रही है .....इसके अलावा मैं लिखता रहा हूँ की कैसे न्यूज़ मर रही है ............पिछले दस दिनों से मैं महसूस कर रहा हूँ की news channels पर सरकारी विज्ञापनों की बाढ़ सी आ गयी है .........अब ये कोई खोजी पत्रकार या संस्था ही आंकड़े खोजेगी की किस महीने में कब कितने सरकारी विज्ञापन आये news channels पर, और अखबारों में ........... .....सच्चाई सामने आनी ही चाहिए ...........और जैसे ही इन्हें सरकारी विज्ञापन मिले इनकी तोपों का मुह सिविल सोसाइटी की तरफ मुड़ गया ..........ये लगे जन आन्दोलन को बदनाम करने ....सरकार और पार्टी का गुणगान करने और भ्रम फैलाने ..............जो मीडिया एक एक byte के लिए मारा मारा फिरता है ....आज डॉ सुब्रमण्यम स्वामी के इतने सनसनीखेज बयान के बाद भी चुप है ....मरघट सी शांति है .......पुष्टि नहीं तो खंडन तो आना चाहिए ........सरकार की तरफ से न सही पार्टी की तरफ से ही सही .......अगर सोनिया जी और राहुल जी देश में हैं तो बताया जाए और डॉ स्वामी से कहा जाए की प्रलाप बंद करो ......और अगर कहीं बाहर हैं तो ये भी बताया जाए की कहाँ हैं .......... चुप्पी साध के देश का मीडिया गाँधी परिवार को बचा रहा है क्या ??????? या ये मुद्दा...ये प्रश्न ....सचमुच इतना छोटा ...इतना घटिया है की इसपे टिप्पणी करना नहीं चाहता ............पर ये बहुत कडवी सच्चाई है की आज अधिकाँश लोग ...चाहे वो कांग्रेस समर्थक लोग ही क्यों न हों........ ये मानते हैं की गांधी परिवार के खाते हैं...... विदेशी banks में .......अब इसका जवाब या तो हाँ में हो सकता है या ना में ........चुप रहना कोई जवाब नहीं है ....और चुप रहे तो गाँधी परिवार रहे ....मीडिया क्यों चुप है ???????? कुत्ते का काम है भोंकना ........यहाँ कुत्ते को एक गाली के रूप में न ले कर एक रक्षक के रूप में लिया जाए please ........कुत्ते का काम है भोंकना और गुर्राना ....ज़रा सी आहट पर भी भोंकना ..........क्यों चुप है आज ...आहट सुनाई नहीं दी ........या हड्डी चूसने में इतना मगन है .......देखो कहीं मर तो नहीं गया ........खबरनवीस बिक गया क्या ???????? लोकतंत्र का चौथा खम्बा भी टूट रहा है क्या ????????




Posted by Ajit Singh Taimur

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