दष्ठौन, पार्टी!
कहा था आश्चर्य से
तुमने भी |
मैं जानता था पर-
मन ही मन,
तुम खुश थीं ;
हर्षिता, गर्विता |
अपनी छवि देखकर,
हम सभी प्रसन्न होते हैं ;
तो अपनी प्रतिकृति देखकर -
कौन हर्षित नहीं होगा |
पुत्र जन्म पर यह सवाल-
क्यों नहीं किया था तुमने ?
मैंने भी पूछ लिया था
अनायास ही |
इसका उत्तर-
लोगों के पास तो था ,पर-
नहीं था तुम्हारे पास ही |
प्रकृति-पुरुष,
विद्या-अविद्या ,
ईश्वर-माया,
शिव और शक्ति ;
युग्म होने पर ही -
पूर्ण होती है,
यह संसार रूपी प्रकृति |
अतः गृहस्थ रूपी संसार की ,
पूर्णाहुति में ही है,
यह पार्टी
10 टिप्पणियाँ:
सही कहा है आपने स्त्री-पुरुष दोनों के योगदान से ही चलता है सृष्टि का क्रम, पुत्री के जन्मदिन पर पार्टी होनी ही चाहिए...
aapki kalam jab is vishay par aage badhti hai to gazab dhati hai.badhai aapko bhi aur samast nari jati ko bhi .
बहुत सच कहा है..हमें आज अपनी सोच बदलनी होगी. बेटी के निस्वार्थ प्यार को आप और कहीं कहाँ पा सकते हैं ?..बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
धन्यवाद शालिनी जी...अनिता जी...
धन्यवाद शर्मा जी...सच कहा...कल भी और आज भी बेटियां मलयज़ पवन के झोंके के समान होती है....
पुत्र जन्म पर यह सवाल-
क्यों नहीं किया था तुमने ?
मैंने भी पूछ लिया था
अनायास ही |
इसका उत्तर-
लोगों के पास तो था ,पर-
नहीं था तुम्हारे पास ही |bahut mahatvpoorn prashna hai ye....jo samaj ki soch se sankramit hui maa ki soch darshata hai...lekin ma to maa hai...
khubsurat rachna ke liye badhayi
बेटा-बेटी का अंतर,
जीवन के उन्मूलों में.
तितली जैसी चहक रहीं है,
फूलों में और शूलों में.
चाँद से लेकर धरती तक,
पहचान बनी हैं ये बेटी.
सफल मार्ग के दुर्गम पथ का,
दंभ हरीं हैं ये बेटी.
दुर्गा है,माँ काली है, साक्षात् माँ वागीश्वरी.
त्रिलोक्य पूज्य भवानी,जीवन की परमेश्वरी.
फिर क्यूं बंध,कलुष है,
दहेज़ के दानव की विकरालता की वजह से ही आम जनता का मोह लड़कियों की और से घटा है जब की इस समस्या के लिए माँ बाप खुद ही जिम्मेदार हैं | ये बहुत ही दुखद स्थिति है | समाज के इस कमजोर नस को आपने कविता के माध्यम से बहुत सही प्रस्तुत किया है
आपको मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं !
धन्यवाद...कासे कहूं, , मिथिलेश दुबे व शर्मा जी...व हरीश जी..सुन्दर कविता के लिये...
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