तूं सामने बैठी हो
मैं तुझे देखता रहूँ
तेरी हर अदा को
निहारता रहूँ
ना सवाल करूँ
ना तेरा हाल पूछूं ?
बस आँखों से लुत्फ़
लेता रहूँ
तेरी मुस्कान दिल में
ज़ज्ब करता रहूँ
निरंतर गुलाबी लबों में
किसी फूल का
अक्स देखूं
तेरी झील सी नीली
आँखों में डूबता रहूँ
तेरे गेसूओं में
उलझता रहूँ
तेरे गंदुमी रंग से
होली खेलता रहूँ
हसरत है कि
बस तुझे देखता रहूँ
15-06-2011
1050-77-06-11
6 टिप्पणियाँ:
क्या खूब लिखा है । बहुत अच्छा ।
hamari bhi dua hai ki aap yu hi likhte rahe... bhut hi pyari panktiya....
हसरत है कि
बस तुझे देखता रहूँ ,देखता रहूँ ,देखता रहूँ .
वाह ! निरंतर जी वाह !
क्या आप इसी दुनिया में रहते हैं ........?
वैसे मुझे चुपचाप से बताइए ,आखिर वो है कौन ....?
इतना टाइम..... दोनों के पास.....?.....वाओ ..
वैसे आप कवी हैं शायद .....|
तभी तो इस महंगाई के दौर में .....ऐसा फाकामस्त चिंतन !
प्रभुजी ,धन्य हैं आप !
आपनेतो उसका पूरा एक्सरे कर लिया ?
उसकी बोली ....उसकी आँखें ....उसका रंग ....
उसके गेसू ....?
निरंतर जी ,आप किस jagah
ये karyakram संपन्न कर रहे हैं ...किसी को भी ना बतलाएं \
जमाना बड़ा ख़राब है .......|
मेरी शुभकामनायें आपके साथ हैं
आपका
डॉ. राकेश शरद
राकेश जी की टिप्पणी का उत्तर दे रहा हूँ "उसको देखने के के लिए वो निगाहें चाहिए ,दिल में हसरत चाहिए ,अगर आप की इच्छा है और समय अभाव है तो सपनों में भी देख सकते हैं ,कोशिश करिए चाह होगी तो राह भी मिलेगी"
आपने पढ़ा
पुनश्च :
पेशे से मैं एक डाक्टर हूँ
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