सोमवार, 20 जून 2011

पिर्तु -दिवस पर ..!!

आज पिता जी जिन्दगी की राह में ,तन्हा खड़ा हूँ ,
क्योंकि आप के परिवार में सबसे बड़ा हूँ ,

वक्त की विसंगतियां प्रश्न बन कर खड़ी हैं,
उनको हल करने में सामायिक बाधाएं बड़ी हैं ,

बहुत याद आती है आज आपकी ,
कीमत पता लगती है ''आज''बाप की ,

पर नही छोड़ेंगे हम उस राह को किसी तरह ,
आजीवन निभाऊंगा वचन,पिता जी इसी तरह ,

मार्ग दर्शक बन सदा आप रहे मेरे अंग संग ,
कमलेश' बिखरते रहे सदा ,जीवन के रस-रंग




1 टिप्पणियाँ:

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

सुन्दर रचना ........

पिता का प्यार , अनुशासन , उनसे मिला संस्कार और सच्चा मार्ग दर्शन ही पुत्र को असल जिंदगी जीने का पथ प्रशस्त करते हैं ....

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