प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता , किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जासकता ; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत है ..षष्ठ -सुमनान्जलि....रस श्रृंगार... इस सुमनांजलि में प्रेम के श्रृंगारिक भाव का वर्णन किया जायगा ...जो तीन खण्डों में ......(क)..संयोग श्रृंगार....(ख)..ऋतु-श्रृंगार तथा (ग)..वियोग श्रृंगार ....में दर्शाया गया है...
प्रथम भाग (क)- संयोग श्रृंगार में --पाती, क्या कह दिया , मान सको तो, मैं चाँद तुझे कैसे....., प्रिय तुमने किया श्रृंगार , पायल, प्रियतम जब इस द्वारे आये, सखि ! कैसे व मांग सिंदूरी ...आदि ९ रचनाएँ प्रस्तुत की जायगीं | प्रस्तुत है तृतीय गीत ---
मान सको तो मान लो...
मान सको तो मान लो ,
मैंने तुमसे किया है प्यार |
तुम ही हो मेरे जीवन धन,
तुम ही मेरा प्यार -
मैंने तुमसे किया है प्यार ||
तुम पर सारा जीवन वारूं ,
वारी सब संसार |
तुम्हीं प्यार की प्रथम किरण हो,
तुम ही अंतिम प्यार |
मैंने तुमसे किया है प्यार ||
तुमसे जगीं भावनायें, मन-
उमड़े रंग हज़ार |
तुम दीपक हो मैं बाती हूँ,
तुम जीवन का सार |
मैंने तुमसे किया है प्यार ||
जब जब आये मन को भाये,
हम कर बैठे प्यार |
हमने तुमसे प्यार किया है,
तुम मेरा संसार |
मैंने तुमसे किया है प्यार ||
मानना चाहो मान लो मेरे,
इस मन का इज़हार |
तुमने हम से प्यार किया है,
अब कैसी मनुहार |
मैंने तुमसे किया है प्यार ||
6 टिप्पणियाँ:
तुम दीपक हो मैं बाती हूँ,
तुम जीवन का सार |
गीत सुन्दर है...........विशेषकर उपरोक्त पंक्तियाँ
सुन्दर भावमयी रचना. बधाई.
तुम पर सारा जीवन वारूं ,
वारी सब संसार |
तुम्हीं प्यार की प्रथम किरण हो,
तुम ही अंतिम प्यार |
मैंने तुमसे किया है प्यार ||
sundar bhavmayee.
बहुत सुन्दर भावनाएं श्रृंगार रस से ओत-प्रोत
धन्यवाद ..शालिनी, ड़ा नूतन, गंगाधर व मिश्र जी... श्रृगार ..रसराज है ...
सुन्दर भावमयी रचना. बधाई.
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