ब्लोगिंग और ग़ालिब की शायरी -[भाग -१ ] भाई जबसे ब्लॉग बनायें हैं रातों की नींद उड़ गयी और दिन का सुकून खो गया .बार-बार दिल में यही गूंजता है - ''दिले नादाँ तुझे हुआ क्या है ; आखिर इस दर्द की दवा क्या है .'' ऊपर से कोई ब्लॉग-पोस्ट लिखकर ब्लॉग पर प्रकाशित कर दो तो टिप्पणियों का इंतजार करते-करते अच्छा खासा ब्लोगर भी बेहाल हो जाता है .दिल में एक हूक..........सी उठती है - ''बनाकर फकीरों का हम भेस ''ग़ालिब'' तमाशा-ए-अहले-करम देखते हैं .'' इधर-उधर टाइम पास कर फिर से ब्लॉग खोलो तो ''नो कमेन्ट'' देखकर रहा-सहा सब्र भी जवाब देने लगता है .ब्लोगिंग न हुई मरी ''इश्क '' की बीमारी हो गयी - ''इश्क से तबियत ने जिस्त का मजा पाया ; दर्द की दवा पाई दर्द बे-दवा पाया .'' अब ब्लोगिंग की बीमारी से ग्रस्त ब्लोगर के लिए तो मानो जीना-मरना सब बराबर .ब्लॉग देखे बिना भी चैन नहीं और देख कर भी - ''मुहब्बत में नहीं है फर्क जीने-मरने का उसी को देखकर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले .'' ले-दे कर यदि कई दिन में एक-आध टिपण्णी आ जाती है तब भी दिल को सुकून कहाँ - ''उनके देखे से जो आ जाती है मुहं पर रौनक ; वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है .'' फिर भी टिप्पणीकार के प्रति ह्रदय अगाध श्रद्धा से भर उठता है - ''वो आये घर हमारे खुदा की कुदरत है ; कभी हम उनको कभी अपने घर को देखते हैं .'' [जारी] शिखा कौशिक http://vicharonkachabootra.blogspot.com
रविवार, 26 जून 2011
ब्लोगिंग और ग़ालिब की शायरी -[भाग -१ ]
6/26/2011 12:34:00 pm
शिखा कौशिक
7 comments
7 टिप्पणियाँ:
इधर-उधर टाइम पास कर फिर से ब्लॉग खोलो तो ''नो कमेन्ट'' देखकर रहा-सहा सब्र भी जवाब देने लगता है .ब्लोगिंग न हुई मरी ''इश्क '' की बीमारी हो गयी -
''इश्क से तबियत ने जिस्त का मजा पाया ;
दर्द की दवा पाई दर्द बे-दवा पाया .''
aji ye to ishq se bhi buri bimari allah bachaye is mui blogging se .
satyavachan.....badhiya post
बहुत खूब शिखा जी...
मजा आ गया ...
बहुत खूब शिखा जी...
मजा आ गया ...
nice
gr8
बहुत खूब...क्या बात है जी...
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