रविवार, 19 जून 2011

पितृ दिवस पर ....डा श्याम गुप्त की कविता ....दौड़


दौड़

बेटे ने कहा ,
पिताजी आप पुराने पड़ गए हैं ;
दुनिया तेज दौड़ रही है , और-
आप पिछड़ रहे हैं
आपको पता नहीं है,
दुनिया कहाँ पहुँच गयी है ;
एक आप ही हैं कि,
वहीं के वहीं हैं

पिता ने कहा- बेटा सही है,
लोग बहुत तेज दौड़ रहे हैं , तभी तो--
कहीं जाना था , और-
कहीं पहुँच रहे हैं।
पहले, मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारे-
शिक्षा के केंद्र हुआ करते थे;
अब, बिजनेस सेंटर होगये हैं।

पहले जंगलों में,
बस्तियां हुआ करती थी ,
अब बस्तियों में ही,
जंगल-राज होगये हैं
पहले जंगल ,
डाकूमय हुआ करते थे,अब-
शहर के गेस्ट हाउस डाकूमय होगये हैं।
और तो और,
जो लोग वरद-हस्त का अर्थ-
पांच रुपये कहाकरते थे
अब पांच हज़ार बता रहे हैं।

यहाँ तक कि हम लोग,
मंदिर मस्जिद चर्च को भी ,
बर्थ डे -केक बनाकर ,
खाए जा रहे हैं

4 टिप्पणियाँ:

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

अच्‍छी विचारवान कविता, बधाई।

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

यथार्थ का सटीक चित्रण

Shalini kaushik ने कहा…

sarthak

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद अजित जी शालिनी व झंझट जी ...
----कभी वे भी तो पुराने होंगे.....ये दुनिया का चक्र है....

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