रविवार, 5 जून 2011

इंसान के हाथ में लालच की कुल्हाड़ी थी


जंगल में घबराहट थी
इंसान के हाथ में
लालच की  कुल्हाड़ी थी
कुल्हाड़ी की सत्ता थी
धन लालच के चक्कर में
बेरहमी से चल रही थी
सबसे बड़ा पेड़ घबरा गया
बाकी पेड़ों से कहने लगा
पहला वार मुझ पर होगा
तुम्हारा नंबर बाद में
 आयेगा
हिम्मत ना हारना
जो किस्मत में लिखा
सहना होगा
अब इंसान भ्रष्ट हो गया
माँ बाप को भी नहीं
छोड़ता
पेड़ों को क्या छोड़ेगा
निरंतर
शोषण पेड़ों का किया
पानी को व्यर्थ बहाया
अब धरती को भी नहीं
छोड़ेगा
लालच में भूल गया
बिना पेड़ पानी के कैसे
जियेगा ? 
05-06-2011
1001-28-06-11
(५ जून विश्व पर्यायवरण दिवस पर)

5 टिप्पणियाँ:

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत बढ़िया रचना
यह बात हमें बात रखनी चाहिए कि बिना जल और वृक्षों के जीवन कैसे होगा....

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

आपको फॉलो भी कर लिया है...ताकि आगे भी पढ़ने को मिलता रहे...आप भी आइए...

Vaanbhatt ने कहा…

इस लालच का अंत कहाँ होगा...

गंगाधर ने कहा…

बढ़िया रचना

kirti hegde ने कहा…

बढ़िया रचना

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