शुक्रवार, 3 जून 2011

भविष्य का महामानव ... डा श्याम गुप्त

                               यदि जीव-सृष्टि का क्रमिक विकास ही सत्य है तो प्रश्न उठता है कि मानव के बाद क्या? व कौन? यद्यपि अध्यात्म व वैदिक विज्ञान जब यह कहता है कि मानव, सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ तत्व है, जो धर्म अर्थ काम व मोक्ष –चारों पुरुषार्थ में सक्षम है, तो संकेत मिलता है कि मानव अन्तिम सोपान है; हां इससे आगे युगों--सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग व कल्प, मन्वन्तर आदि—के वर्णन से स्वयम मानव के ही पुनः पुनः सदगुणों, विचारों, भावनाओं, संवेदनाओं आदि में अधिकाधिक श्रेष्ठ होते जाने के विकास-क्रम का भी संकेत प्राप्त होता है, अविकसित मानव से मानव से महामानव तक।
                            विज्ञान के अनुसार विकास की बात करें तो आज आधुनिक विज्ञान व तकनीक शास्त्र के महाविकास ने मानव के हाथ में असीम सत्ता सौंप दी है। वह चांद पर अपने पदचिन्ह छोडकर,अपने कदम मंगल, शुक्र आदि अन्य ग्रहों की ओर बढा चुका है। उसने हाल ही में जल से युक्त अन्य ग्रह भी खोज निकाला है और अब शायद जीवन युक्त ग्रह की खोज भी दूर नहीं है। यह एक अहम विजय है। वह शरीर में गुर्दे, फ़ेंफ़डे, यकृत, ह्रदय आदि बदलने में सफ़ल हुआ है व महान संहारक रोगों पर भी विजय पाई है। हां, इन सफ़लताओं के साथ उसने अणु-शस्त्र , रासायनिक व विषाणु बम भी बनाये हैं जो सारी मानव जातिव दुनिया को नष्ट करने में सक्षम हैं।

                  इस प्रकार वह मानव जिसने मध्य युग में विश्व भर में अपने भाइयों के खून से हाथ रंगे थे, आज विज्ञान के सहयोग से प्रकृति विजय का भागीरथ प्रयत्न कर रहा है। साथ ही आज विज्ञान कथाओं, सीरिअल्स, सिनेमा आदि में, रोबोट, मानव-पशुओं, विचित्र प्राणियों की कथाओं की कल्पना की जा रही है जो मानव+पशु आदि की सृष्टि का सत्य भी बन सकती है।

                 प्राणी क्लोन की सफ़लता मानव क्लोन में बदलकर शायद भविष्य की मानवेतर-सृष्टि का, विकास-क्रम हो सकती है। यद्यपि यह सभी मानवेतर सृष्टि वैदिक विज्ञान /भारतीय साहित्य में पहले से ही वर्णित है। सृष्टा, ब्रह्मा का ही एक पुत्र--त्वष्टा ऋषि - यज्ञ द्वारा इस प्रकार की प्राणी-सृष्टि की रचना करने लगा था—मानव का सिर+पशु का धड आदि। इससे सामान्य सृष्टि के नियम व संचालन, संचरण में बाधा आने लगी थी। वे न प्राणी थे न मानव न देव अपितु दैत्य श्रेणी के थे। त्रिशिरा नामक तीन सिर वाला प्राणी (देव=दैत्य=मानव ) उसी त्वष्टा का पुत्र था जिसका इन्द्र ने बध किया, तदुपरान्त ब्रह्माने शाप द्वारा त्वष्टा का ऋषित्व ( विद्या, ज्ञान) छीन लिया गया। शायद प्रकृति माता को यह असंयमित विकास मन्जूर नहीं था, और आज भी नहीं होगा।

                प्रश्न उठता है कि इस असीम सत्ता की विज्ञान रूपी कुन्जी को मानव के हाथ में सौंपने वाला कौन है? क्या ईश्वर?-जैसा अध्यात्म कहता है कि, सब का श्रोत वही है, पूर्ण, संपूर्ण,सत्य, सनातन, ऋत सत्य– उसी से सब उत्पन्न होता है, उसी से आता है, उसी में जाता है, वह सदैव पूर्ण रहता है। यथा --

" पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात पूर्ण्मुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥"
या अध्यात्म, या ज्ञान या आधुनिक विज्ञान या मानव-मन जो महाकाश है, अनंत शक्ति का भन्डार?  वस्तुतः वह है स्वयम मनुष्य का सर्वोत्तम विकसित मस्तिष्क—प्रमस्तिष्क (सेरीब्रम—cerebram-उच्चमस्तिष्क), जिसने मानव को समस्त प्राणियों से सर्वोपरि बनाया है।

                 प्रमस्तिष्क ही मानव मस्तिष्क में उच्च क्षमताओं, विद्वता, उच्च संवेदनाओं ,प्रेरणाओं का केन्द्र है। परन्तु यह विद्वता व क्षमता जिसने मानव के हाथ में असीम शक्ति दी है, उसके स्वयम के लिये अभिशाप भी हो सकती है, डिक्टेटरों व परमाणु-बम की भांति विनाश का कारण भी। अतः मानव जाति को विनाश से बचाने हेतु, प्रकृति - माता (जो अपने पुत्र, मानव, की भांति क्रूर नहीं हो सकती एवम उसे अपनी आज्ञा पर अपने अनुकूलन में सम्यग व्यवहार से चलाने का यत्न करती आई है) ने कदम बढाया है। यह कदम मानव मस्तिष्क में एक एसे केन्द्र को विकसित करना है जो मानव को आज से भी अधिक विवेकशील सामाज़िक,सच्चरित्र, संयमित, विचारवान, संस्कारशील,व्यवहारशील व सही अर्थों में महामानव बनायेगा। वह केन्द्र है—प्रमस्तिष्क में विकसित भाग –बेसल नीओ कार्टेक्स (basal neo cortex)।                           मानव के जटिल मस्तिष्क के तुलनात्मक अध्ययन व शोधों से ज्ञात हुआ है कि मछली में प्रमस्तिष्क केवल घ्राणेन्द्रिय तक सीमित है; रेंगने वाले ( रेप्टाइल्स) जन्तुओं में बडा व विकसित; स्तनपायी जन्तुओं( चौपाये आदि मेमल्स) में वह पूर्ण विकसित है। इनमे प्रमस्तिष्क एक विशेष प्रकार की कोशिकाओं की पर्तों से बना होता है जिसे कोर्टेक्स (cortex) कहा जाता है।   उच्चतम स्तनपायी मानव मस्तिष्क में ये पर्तें वहुत ही अधिक फ़ैली हुई व अधिकाधिक जटिलतम होती जातीं हैं; एवम बहुत ही अधिक वर्तुलित( folded) होकर बहुत ही अधिक स्थान घेरने लगती हैं।(चित्र-१. व २.) बुद्धि, ज्ञान, उच्च भावनाएं आदि प्रमस्तिष्क( सेरीब्रम या cerebral cortex) की इन्ही पर्तों की मात्रा पर आधारित होता है। मानव में यह भाग अपने प्रमस्तिष्क का २/३( सर्वाधिक) होता है और मनुष्य में सर्वाधिक ज्ञान व विवेक का कारण।  प्रो.ह्यूगो स्पेत्ज़ व मस्तिष्क -विज्ञानी वान इलिओनाओ --के अध्ययनो के अनुसार प्रमस्तिष्क के विकासमान भाग कंकाल बक्स के आधार पर होते हैं, वे कंकाल के सतह पर अपने विकास के अनुसार छाप छोडते हैं इन्ही के अध्ययन से मस्तिष्क के विकासमान भागों का पता चलता है।

                   इन वैज्ञानिकों के अध्ययनो से से पता चलता है कि मानव मस्तिष्क अभी अपूर्ण है तथा मानव के प्रमस्तिष्क के आधार भाग में एक नवीन भाग (केन्द्र) विकसित होरहा है जो मानव द्वारा प्राप्त उच्च मानसिक अनुभवों, संवेगों, विचारों व कार्यों का आधार होगा। यह नवीन विकासमान भाग प्रमस्तिष्क के अग्र व टेम्पोरल भागों के नीचे कंकाल बक्स (क्रेनियम-cranium) के आधार पर स्थित है। इसी को बेसल नीओ कार्टेक्स (basal neo cortex) कहते हैं। प्राइमरी होमो सेपियन्स (प्रीमिटिव मानव) में यह भाग विकास की कडी के अन्तिम सोपान पर ही दिखाई देता है व भ्रूण के विकास की अन्तिम अवस्था में बनता है।   पूर्ण मानव कंकाल में यह गहरी छाप छोडता है। बेसल नीओ कार्टेक्स के दोनों भागों को निकाल देने या छेड देने पर केवल मनुष्य के चरित्र व मानसिक विकास पर प्रभाव पडता है, अन्य किसी अंग व इन्द्रिय पर नहीं । अतः यह चरित्र व भावना का केन्द्र है।

               इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि भविष्य में इस नवीन केन्द्र के और अधिकाधिक विकसित होने से एक महामानव (यदि हम स्वयम मानव बने रहें तो) का विकास होगा (इसे महर्षि अरविन्द के अति-मानस की विचार धारा से तादाम्य किया जा सकता है); जो चरित्र व व्यक्तित्व मे मानवीय कमज़ोरियों से ऊपर होगा, आत्म संयम व मानवीयता को समझेगा, मानवीय व सामाज़िक संबंधों मे कुशल होगा और भविष्य में मानवीय भावनाओं के विकास के महत्व को समझेगा।

                                अतः मानव मस्तिष्क के इस नव-विकसित भाग का ज्ञान अत्यन्त महत्वपूर्ण है क्योकि यह निम्न स्तर के व्यक्तियों के हाथों मे असीम शक्ति पड जाने से उत्पन्न, मानव जाति के अंधकारमय भविष्य के लिये एक आशा की किरण है। इस अंतरिक्ष विकास, अणु शस्त्रों के युग, पर्यावरण- प्रकृति विनाश व विनाशकारी अन्धी दौड व होड के युग में भी मानव जाति के जीवित रहने का संदेश है। विज्ञान की यह देन भी वस्तुतः प्रकृति मां का जुगाड है, अपने पुत्र मानव को स्वयं-विनाश से बचाने हेतु; एवम त्वष्टाओं को शक्ति हीन करने हेतु।


6 टिप्पणियाँ:

Dr. Yogendra Pal ने कहा…

बहुत अच्छा लेख, इसमें कोई शक नहीं कि विकास के क्रम से जुजरते हुए मानव तथा मानव मस्तिष्क में कई प्रकार के बदलाब होंगे|

पर क्या इस बारे में भी कोई अध्ययन हुआ है कि बढ़ता प्रदूषण हमारे विकास में किस प्रकार के व्यवधान पैदा करेगा?

Shalini kaushik ने कहा…

bahut jankari bhara aalekh aap jaise vidhvan ke dwara hi likha jana sambhav hai.badhai.

shyam gupta ने कहा…

----अभी तो हम सब प्रदूषण बढाने में लगे हुए हैं.....इस पर शोध की तो कोई सोच ही नहीं रहा है...
---हं अनुभव जन्य अध्ययन क्या कम हैं...जैसे गौरैया आदि के कम होने से कीट-मच्छरों का बढ जाना..और मनुष्य का शुद्ध हवा व छतों को छोडकर कमरों में बन्द होजाना....फ़िर सर दर्द की दवा सेवन करना..
---- प्रदूषण के प्रभाव से..पुरुषों की जनन क्षमता कम होना...आदि..

हरीश सिंह ने कहा…

jankari bhara lekh

Anita ने कहा…

ज्ञानवर्धक लेख !

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद शालिनी,हरीश जी व अनिता जी....

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