सोमवार, 23 मई 2011

जिद ही जिद में


 वो खुद ना आए
ख़त के जरिए
हाल-ऐ दिल सुनाते रहे
हम उनके ना आने से
खफा हो गए
हमने भी जिद में
उन्हें जवाब ना दिया
वो ख़त भेजते रहे
हम निरंतर जिद में
खामोश बैठे रहे
ख़त आने बंद हो गए 
हमने सोचा वो भी
जिद पे आ गए
फिर  पता चला
वो किसी और के
 हो गए
हम सर पकड़ कर
बैठ गए
जिद ही जिद में
उनसे हाथ धो गए 
23-05-2011
914-221-05-11

1 टिप्पणियाँ:

विभूति" ने कहा…

jid hi jid me... bhut accha likh diya apne... bhut khubsurat rachna...

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