हर तरफ फ़ैली
गंदगी क्यों देखूं ?
भ्रष्टाचार के किस्से
क्यों सुनूं ?
मार काट की खबरें
क्यों पढूं ?
क्यों इंतज़ार किसी और
का करूँ ?
कोई और करेगा
यह सोच कर क्यों
बैठा रहूँ ?
औरों की तरह चुपचाप
देखता रहूँ
क्यों ना मैं ही पहल
करूँ ?
कुछ गंदगी मैं भी साफ़
करूँ
भ्रष्टाचार से लड़ाई लडूँ
निरंतर
बढ़ रही नफरत को
कम करूँ
सोते हुओं को
जगाऊँ
06-05-2011
818-25-05-11
3 टिप्पणियाँ:
बिलकुल सही बात शुरुआत तो हमें ही करनी होगी...पर सिस्टम के अन्दर और सिस्टम के बाहर से लड़ने में अंतर है...हम जीतना कर सकते हैं उतना जरुर करें...शरीफ लोग लाचारी का ताना-बाना कब तक ढ़ोयेंगे...
bhut acchi pahal hai...
सच है.... क्यों ना मैं ही पहल करूं...
एक टिप्पणी भेजें