रविवार, 1 मई 2011

श्रृद्धांजलि --... डा श्याम गुप्त ....

          निर्मोही  -----

कितना निर्मोही है ये जीव,
ये आत्मा, ये जीवात्मा |                

चलदेता है तोड़कर ,
 एक ही पल में-
 सारे बंधन, रिश्ते नाते
 उन्मुक्त आकाश की ओर;
निर्द्वंद्व, निर्बाध,स्वतंत्र, मोहमुक्त ,
मुक्ति की ओर |
और पीछे रहजता है -
माटी का शरीर,
सड़ने को गलने को  या फ़िर -
जलने को ,
उसी माटी में मिलने को |

यही गति है शरीर की,
यही मुक्ति है आत्मा की |

पर क्या वस्तुत : यह जीव -
मुक्त होजाता है ,
संसार से ?
कैद रहता है वह,  सदा-
 मन में;
आत्मीयों के याद रूपी
बंधन में , और-
हो जाता है अमर |

अमरत्व व मुक्ति सर्वथा भिन्न हैं,
फिर भी-
एक ही  सिक्के के दो पहलू हैं |
अत: मुक्त होकर इस जगत से,
बंधन से;
विश्व में ही-
अमरता के बंधन में ,
जीव बंध जाता है ;
सिर्फ उसका आयाम बदल जाता है |

 यही मृत्यु है,
यही अमरता;
यही मुक्ति,
यह जीवन सरिता ||

4 टिप्पणियाँ:

मदन शर्मा ने कहा…

""अमरत्व व मुक्ति सर्वथा भिन्न हैं,
फिर भी-
एक ही सिक्के के दो पहलू हैं |
अत: मुक्त होकर इस जगत से,
बंधन से;
विश्व में ही-
अमरता के बंधन में ,
जीव बंध जाता है ;
सिर्फ उसका आयाम बदल जाता है |

यही मृत्यु है,
यही अमरता;
यही मुक्ति,
यह जीवन सरिता""
पहली बार आपके ब्लॉग पर आया अच्छा लगा !
वाह ... कितना मधुर ... आत्मा को .... अंतस को छूता हुवा .... कमाल की अभिव्यक्ति है ....जीवन की यही सच्चाई है, मृत्यु ही सत्य है

आशुतोष की कलम ने कहा…

इस आत्माको शस्त्र काट नहीं सकते,आग जला नहीं सकती, जल गला नहीं सकता और वायु सूखा नहीं सकता

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद शर्माजी व आशुतोश....सही है...न जायते म्रियते वा कदचिन्नाय....

हल्ला बोल ने कहा…

हर जीव इस पृथ्वीलोक पर ईश्वर द्वारा सौंपे गए कार्यों को पूर्ण करने आता है, जब वे कार्य समाप्त हो जाते हैं तो उन्हें वापस बुलाकर ईश्वर दूसरे कार्य सौंप देता है. इसी को मौत कहते है. यह मृत्युलोक है, जो आया है उसे जाना ही होगा, परन्तु समय से पूर्व प्रस्थान दुःख देता है. .. ॐ शांति.

Add to Google Reader or Homepage

 
Design by Free WordPress Themes | Bloggerized by Lasantha - Premium Blogger Themes | cna certification