मंगलवार, 12 अप्रैल 2011

लोकतंत्र खो रहल बा

कहीं भूख से केहू............ बच्चा रो रहल बा
कहीं रोजे अन्न............. बर्बाद हो रहल बा

पापियन के अब स्वर्ग नरक के चिंता नइखे
नोटवा के गंगा में..... पाप कुल्हे धो रहल बा

खड़ा बा जौन बनके नेता........ सबके मसीहा
धरम के नाम पे. फसाद के बिया बो रहल बा

बेईमनिये के त अब......... सगरो सासन बा
इमान्दारे के मुँह............ काला हो रहल बा

अब आपन अजदियो त..... बूढ़ा गइल बिया
संसद के गलिआरा में लोकतंत्र खो रहल बा
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हिंदी अनुवाद
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कहीं भूख से......... कोई बच्चा रो रहा है
तो कहीं रोज़....... अन्न बर्बाद हो रहा है

पापी को स्वर्ग नर्क की...... चिंता न रही
नोटों की गंगा में...... पाप सारे धो रहा है

खड़ा है जो बनके नेता..... सबका मसीहा
धर्म के नाम पर फसाद के बीज बो रहा है

बेईमानी का हीं........ हर तरफ शासन है
इमानदारों का हीं..... मुँह काला हो रहा है

बूढी हो चुकी है अब... आज़ादी भी अपनी
लोकतंत्र संसद की गलिओं में खो रहा है



केहू - कोई
रहल बा - रहा है
रोजे - रोज
नइखे - नहीं है
कुल्हे (कुले भी कहा जाता है ) - सब, सारे
जौन - जो
बिया - बीज,(बिया स्त्रीलिंग के लिए 'है' के रूप में भी प्रयोग होता है इस रचना में दोनों 'बिया' का प्रयोग है )
बेईमनिये - बेईमानी का हीं
सगरो - सब ओर, हर जगह
सासन - शासन
आपन - अपनी या अपना
अजदियो - आज़ादी भी
बूढ़ा गइल बिया - बूढी हो चुकी है
गलिआरा - किसी बिल्डिंग के अन्दर बना हुआ संकरा रास्ता

5 टिप्पणियाँ:

Shikha Kaushik ने कहा…

bahut achchhi v sarthak prastuti .badhai .

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

प्रेरणाप्रद एवं विचारपरक रचना। बधाई।

............
ब्‍लॉगिंग को प्रोत्‍साहन चाहिए?
एच.आई.वी. और एंटीबायोटिक में कौन अधिक खतरनाक?

Shalini kaushik ने कहा…

अब आपन अजदियो त..... बूढ़ा गइल बिया
संसद के गलिआरा में लोकतंत्र खो रहल बा
bahut sateek prastuti.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति

Vaanbhatt ने कहा…

ka batai bhiya is desh mein ka-ka ho rahil ba...

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