शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

प्रेम काव्य-महाकाव्य--तृतीय सुमनान्जलि..क्रमश:-----चुपके चुपके आये...---डा श्याम गुप्त



  प्रेम काव्य-महाकाव्य--गीति विधा  --     रचयिता---डा श्याम गुप्त  

  -- प्रेम के विभिन्न  भाव होते हैं , प्रेम को किसी एक तुला द्वारा नहीं  तौला जा सकता , किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जासकता ; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत  सुमनांजलि- प्रेम भाव को ९ रचनाओं द्वारा वर्णित किया गया है जो-प्यार, मैं शाश्वत हूँ, प्रेम समर्पण, चुपके चुपके आये, मधुमास रहे, चंचल मन, मैं पंछी आजाद गगन का, प्रेम-अगीत व प्रेम-गली शीर्षक से  हैं |---प्रस्तुत है  प्रेम का एक और भाव ... चतुर्थ रचना --चुपके चुपके आये ....गीत ......



मन के द्वार खोल प्रिय जब तुम,
चुपके चुपके आये ।
रंग-विरंगे सपने कितने,
उर नगरी में छाये |.....
चुपके चुपके आये ||


खोये खोये रहते हैं ,हम-
तेरे ही सपनों में |
हम होगये पराये, हे प्रिय !
तुमसे मिल अपनों में |
वेसुध मन हो मस्त मगन ,
प्रिय, तेरी तान सुनाये |
जैसे राम नाम धुन कोई,
मस्त जुलाहा गाये | ......
चुपके चुपके आये ||

मेरे मन की प्रीति अजानी,
एक अनछुई चूनर धानी |
ओढ़ के सोई मैं बेगानी,
प्रथम पहर की नींद सुहानी |
स्वप्न बने तुम मन में आये,
प्रथम प्रीति के दीप जलाए |
जैसे इक आवारा बादल,
सारे आसमान पर  छाये |......
चुपके चुपके आये  ||

3 टिप्पणियाँ:

हरीश सिंह ने कहा…

मेरे मन की प्रीति अजानी,
एक अनछुई चूनर धानी |
ओढ़ के सोई मैं बेगानी,
प्रथम पहर की नींद सुहानी |
---------------
sundar rachna.

rubi sinha ने कहा…

स्वप्न बने तुम मन में आये,
प्रथम प्रीति के दीप जलाए |
जैसे इक आवारा बादल,
सारे आसमान पर छाये |.
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प्रेम पर सुन्दर अभिव्यक्ति

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद हरीश जी व रूबी जी---

प्रेम उदधि में डूबिये , दूबे सो उतराय ....

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