शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

म काव्य-महाकाव्य--गीति विधा  --     रचयिता---डा श्याम गुप्त  

  ------ प्रेम के विभिन्न  भाव होते हैं , प्रेम को किसी एक तुला द्वारा नहीं  तौला जा सकता , किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जासकता ; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत  चतुर्थ -सुमनांजलि- प्रकृति - में प्रकृति में उपस्थित प्रेम के विविध उपादानों के बारे में,  नौ विभिन्न अतुकान्त गीतों द्वारा प्रस्तुत किया गया है जो हैं--भ्रमर गीत, दीपक-राग, चन्दा-चकोर, मयूर-नृत्य , कुमुदिनी, सरिता-संगीत, चातक-विरहा, वीणा-सारंग व शुक-सारिका... । प्रस्तुत है  तृतीय गीत---चन्दा-चकोर....

चकोर ! 
तू क्यों निहारता रहता है-
चाँद की ओर ? 
वह दूर है,
अप्राप्य है ;
फिर भी क्यों साधे है-
मन की डोर ?

प्रीति में है बड़ी गहराई,
प्रियतम की आस , जब-
मन में समाई ;
दूर हो या पास ,
मन लेता है अंगडाई |
प्रेमी-प्रेमिका तो-
नयनों से ही बात करते हैं ;
इक दूजे की आहों में ही ,
बस रहते हैं ;
इसी को तो प्यार कहते हैं |

मिलकर तो सभी प्यार कर लेते हैं,
जो दूर से ही रूप-रस पीते हैं,
वही तो अमर-प्रेम जीते हैं ||    ----क्रमश:...चतुर्थ गीत...मयूर-नृत्य ....

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