रविवार, 3 अप्रैल 2011

नव वर्ष पर नव-अगीत कवितायें....डा श्याम गुप्त....

१--अर्गलायें....
बंद हैं हर गली
रास्ते हैं गुम
लगीं हैं आतंक की अर्गलायें;
द्वार पर ,
किस तरह ज़िंदगी
बाहर आए
चह्चहाये।
२-- कांटे ही कांटे....
कांटे ही कांटे हैं ,
गुलशन मैं
पुष्प हैं गंध हीन
प्रेम की बयार चले ,तो-
बहे सुगंध
सुरभित हों पुष्प ।
 ३--आदमी...
फेंके हुए दोनों पर,
झपट पड़े दोनों
कुत्ता और आदमी
जीत गया श्वान
आदमी हैरान ।

5 टिप्पणियाँ:

आशुतोष की कलम ने कहा…

प्रेम की बहार तो आप के काव्यों से चलती ही रहती है..
सुगंध भी मिल रही है ..
सुन्दर

Shikha Kaushik ने कहा…

फेंके हुए दोनों पर,
झपट पड़े दोनों
कुत्ता और आदमी
जीत गया श्वान
आदमी हैरान ।
ati marmik ...

ana ने कहा…

bahut sundar .....satya ko ukerta hua post

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद आशुतोष---प्रेम की सुगन्ध को कौन रोक पाया है--इश्क-मुश्क कब छिपाये छिपते हैं....

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद अनाजे व शिखाजी....नव वर्ष मन्गलमय हो...

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