मंगलवार, 12 अप्रैल 2011

मतभेद रखो,मनभेद मत रखो


गुरु,शिष्य
दोनों राजनीति में थे
विचारों में
मतभेद बढ़ता गया
शिष्य,शिष्टता की सीमाएं
लांघता गया
गुरु के लिए निरंतर
अनर्गल बातें कहने लगा
विचारों में मतभेद को
दुश्मनी समझने लगा
मिलना जुलना बंद
कर दिया
शिष्य का परिवार
दुर्घटना का शिकार हुआ
शिष्य विदेश में था
गुरु को पता चला
फ़ौरन स्थल पर पहुँच
परिवार को अस्पताल
पहुंचाया
जब तक शिष्य विदेश से
नहीं लौटा
जी जान से सेवा
करता रहा
शिष्य को आते ही सब
पता चला
ग्लानि से भर गया
गुरु से मिलते ही रोने लगा
परिवार की जान
बचाने के लिए
धन्यवाद देने लगा
गुरु ने आशीर्वाद दिया
और कहा मतभेद रखो
मनभेद मत रखो
शिष्टता कभी ना भूलो
सुबह का भूला
शाम को भी लौट आये तो
भूला नहीं कहलाता
12-04-2011
656-89-04-11

8 टिप्पणियाँ:

आशुतोष की कलम ने कहा…

sundar baten..
magar barik si lakir ko hum aksar par kar jaten hain..

Shalini kaushik ने कहा…

मनभेद मत रखो
शिष्टता कभी ना भूलो
ek guru se aisee hiummeed ki jati hai.kintu dukh hai ki ab aise guru bhi bahut kam ho chale hain.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

अच्छा सन्देश देती रचना ..

avneesh ने कहा…

बहुत अच्छी रचना लिखी है। इस रचना से सभी को एक संदेश मिल रहा है कि शिष्टता कभी नहीं भूलनी चाहिए।

हरीश सिंह ने कहा…

बहुत अच्छी रचना लिखी है। इस रचना से सभी को एक संदेश मिल रहा है कि शिष्टता कभी नहीं भूलनी चाहिए।
डंके की चोट पर

shyam gupta ने कहा…

क्य बात है---सुन्दर...

तेजवानी गिरधर ने कहा…

बहुम अच्छी व काम की सीख सुंदर तरीके से पेश की है

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत सुंदर तरीके से आप इस बात को सामने रखा..आज जहां भी मतभेद बढ़ते हैं पहले इंसान व्यक्ति विशेष की सारी अच्छाइयां भूलकर सिर्फ नकारात्मक पहलू याद रखता है जबकि शिष्टता नहीं खोनी चाहिए....और वहीं इंसान सबसे पहले भूलता है...
बहुत सुंदर...

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