सोमवार, 4 अप्रैल 2011

खुल्लम खुल्ला प्यार करो


पिताजी
बचपन में कहते थे
 लोगों  से  मिला  करो
हाल चाल जाना करो
अपनों को याद करा करो
चिठ्ठी पत्री लिखा करो
हाल अपना बताया करो
अच्छा साहित्य पढ़ा करो
मन को स्वस्थ रखा करो
छोटों को प्यार करा करो
बड़ों का सम्मान दिया करो
केवल अपना ना सोचा करो
चिंता सब की करा करो
शर्म लिहाज रखा करो
अब बच्चों से सुनता हूँ
मतलब हो तो मिला करो 
चैटिंग से बात करा करो
एस ऍम  एस  भेज
काम चलाया करो
फेस बुक पर
हाल चाल बताया करो
इंटरनैट पर पढ़ लिया करो
उम्र की ना सोचा करो
छोटों,बड़ों को
बराबर समझा करो
जानो नहीं तो
बात भी ना करा करो
परवाह किसी की मत करो
निरंतर अपनी सोचा करो
खुल्लम खुल्ला प्यार करो
शर्म लिहाज को ताक़
में रखो
04-04--11
592—25 -04-11

2 टिप्पणियाँ:

ana ने कहा…

satya vachan....sargarbhit

विभूति" ने कहा…

bhut sahi kaha apne... bhut khub....

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