शनिवार, 30 अप्रैल 2011

हकीकत....


http://atulshrivastavaa.blogspot.com

सेकंड,
मिनट,
घंटा,
दिन,
महीना,
और साल.....।
न जाने
कितने कैलेंडर
बदल गए
पर मेरे आंगन का
बरगद का पेड
वैसा ही खडा है
अपनी शाखाओं
और टहनियों के साथ
इस बीच
वक्‍त बदला
इंसान बदले
इंसानों की फितरत बदली
लेकिन
नहीं बदला  तो
वह बरगद का पेड....।
आज भी
लोगों को 
दे रहा है
ठंडी छांव
सुकून भरी हवाएं.....
कभी कभी
मैं सोचता हूं
काश इंसान भी न बदलते
लेकिन
फिर अचानक
हवा का एक  झोंका आता है
कल्‍पना से परे
हकीकत से सामना होता है
और आईने में
खुद के अक्‍श को देखकर
मैं शर्मिंदा हो जाता हूं

5 टिप्पणियाँ:

विभूति" ने कहा…

very nice rachna...

Anita ने कहा…

सुंदर बरगद का वृक्ष और सार्थक संदेश देती कविता, हम सभी बदल रहे हैं यह हमारा स्वभाव है वैसे पेड़ भी धीरे-धीरे बदल ही रहा है...

Parul kanani ने कहा…

bahut sahi!

Atul Shrivastava ने कहा…

शुक्रिया आप सबका।
http://atulshrivastavaa.blogspot.com/

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत ही बढिया

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