भष्ट्राचार ऐसा शब्द जिसे कोई भी सुनना पसंद नही करेगा। लेकिन यह सच है पिछले पांच वर्षों से भष्टाचार में दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ोतरी हुई है। ऐसा नही है कि पहले भ्रष्टाचार नही था, पहले भी था और आज भी है। पहले भ्रष्टाचार सरकारी अधिकारियों विशेषकर पुलिस महकमें को लेकर जाना था। लेकिन अब यह राजनेताओ को लेकर जाना जाने लगा है। ऐसा नही है कि अधिकारी घूस लेना छोड़ दिये इसलिए अधिकारियों का नाम कम आता है। राजनेताओं ने भ्रष्टाचार की सारी हदें पार कर दी हैं। इसलिए अखबारों के पन्नों पर हर जगह छाये रहते हैं।
राजनेताओ ने कई दिल दहला देने वाले घोटाले किये हैं। चारा घोटाला से लेकर कॉमनवेल्थ गेम और टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाला भारत ही नही पूरे विश्व में भारतीय राजनेताओं की छवि खराब की है। इसके बाद परत दर परत खुल रहे काली कमाई का राज भी भारतीय राजनेताओं और उद्योगपतियों की कलई खोल दी है। स्विस बैंकों में देश का अकूत पैसा जमा है।
सवाल उठता है- आखिर भ्रष्टाचार किस कारण से बढ़ रहे हैं और इसका जिम्मेदार कौन है।
सीधा सा जवाब है इसके पीछे देश का लचर कानून और जांच एजेंसियों की लापरवाही। इसके बाद नंबर आता है देश की अभागी जनता का जिसने दागी राजनेताओं के बहकावे में आकर वोट दिया। मैं तो मानता हूं इसके पीछे परोक्ष रुप से जनता ही है जिसने सब कुछ सहते हुए भी इसके खिलाफ मौन रहती है। न तो कोई विरोध प्रदर्शन और न ही अपनी गलती से सबक लिया। अगर दागी छवि वाले राजनेता राजनीति में नही चुने जायेगें तो भ्रष्टाचार को काफी कम किया जा सकेगा।
हां देश को अन्ना हजारे नाम का एक जरुर भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाला मसीहा मिला है। काफी देर ही सही लेकिन अब जरुरत है देश के हर शहर में कम से कम एक अन्ना हजारे जैसा नेता हों । तभी आगे भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई जीती जा सकेगी। अगर ऐसा नही हुआ तो लोकपाल विधेयक पास होने पर भी देश की जनता के साथ छल होगा।
अगर घोटालों की बात करें तो अकेले कॉमनवेल्थ गेम में 70 हजार करोड़ रुपये का घोटाला किये जाने का अनुमान है। टू-जी स्पेक्ट्रम औऱ फिर आदर्श सोसाइटी जैसी प्राप्रल्टी में भारी गड़बड़ी ने नेताओं के भ्रष्ट आचार को बखूबी दर्शाता है। इसमें उद्योगपति भी पीछे नही है। हद तो तब हो गयी जब बड़ी बेशर्मी से सरकार स्विस बैंकों में काली कमाई करने वालों का नाम बताने से मना कर रही है।
भ्रष्टाचार की जिम्मेदारी का सवाल जहां तक है इसमें लगभग जनता, सरकारी जांच एजेंसी और देश की कानून व्यवस्था के साथ हमाम में सब नंगे वाली कहावत भी चरितार्थ है। जब सभी में एक ही दोष है तो कौन किसकी शिकायत करेगा। हां मीडिया ही एक ऐसी चीज है जो राडिया और बरखा दत्त जैसी मीडिया में शख्शियत होने के बावजूद भी अपनी जिम्मेदारी से पीछे नही हटी है।
-मंगल यादव
बुधवार, 27 अप्रैल 2011
भ्रष्टाचार का वास्तविक जिम्मेदार कौन ?
4/27/2011 01:17:00 pm
mangal yadav
8 comments
8 टिप्पणियाँ:
--सही कहा----हमाम में सब नंगे ...
बनारस विश्व विद्यालय में 1968 में बी.ए. अंतिम वर्ष का छात्र था और नौकरी की ज़रूरत थी। आर्मी सिग्नल कोर में सिग्नल मैनों की भर्ती हो रही थी। फ़ॉर्म लाया और उसे जमा करने के लिए सरकारी कार्यालय (कचहरी में) गया तो बाबू ने दो रुपए की मां की बतौर रिश्वत। बनारस विश्व विद्यालय का छात्र और मालवीय जी के आदर्श को मानने वाला विद्यार्थी था। अतः और कुछ तो नहीं कर पाया परंतु फ़ॉर्म ही नहीं भेजा। जिन मित्रों ने भेजा उनका भी चयन नहीं हुआ और फिर एम.ए. की पढ़ाई में लग गए। केंद्र सरकार की सेवा की और रिश्वत देखकर कभी कोई काम नहीं कराया। मुंबई दो बार वाहन की चालान हुई 50 रुयए लेकर छोड़ने का प्रस्ताव दिया पुलिस बंधु ने। लेकिन 200 रुपए की चालान काटी गुस्से में। दूसरी बार केवल 100 की ही काटी। उस बार पुलिस को कोई प्रस्ताव देने का अवसर ही नहीं दिया। मुझे जल्दी थी अतः उनसे बोला जल्दी कीजिए। रसीद कटाई और वहीं पर 100 भरे तथा आगे बढ़े। इस कारण ट्रैफ़िक का नियम नहीं तोड़ता हूं। किसी सरकारी कार्यालय में काम होता है तो चार चक्कर लगा लेता हूं। बस इसी से संतुष्ट हूं।
किस किस को कोसिए किस को रोइए, नियम मत तोड़िए भ्रष्ट मत होइए, थोड़ा कष्ट झेलिए भ्रष्टाचार न बढ़ाइए।
भ्रष्टाचार वास्तव में कोई नई समस्या नहीं है, यह पहले भी था, लेकिन छोटे पैमाने पर, क्योंकि पहले चारित्रिक मूल्य इतने नहीं गिरे थे, लेकिन पैसे की आपाधापी में चरित्र काफी पीछे छूट गया है, हर आदमी भ्रष्ट है, कहा तो यह भी जाता है ईमानदार वह है जिसे भ्रष्टाचार का मौका नहीं मिला, पूरा सिस्टम भ्रष्ट हो चुका है, ऐसे सिस्टम से नेता, अफसार, कर्मचारी, व्यापारी, पत्रकार सभी भ्रष्ट ही पैदा हो रहे हैं, केवल नेता ही दोषी नहीं है
मंगल जी सार्थक पोस्ट, डॉ. दलसिंगार यादव जी, मैं आपकी ईमानदारी को प्रणाम करता हूँ.
मंगल जी ..
परिवर्तन समाज की हर धरा से होगा तभी समूल नाश संभव है इस दानव का ..
सुन्दर रचना ..
मंगल जी जब व्यक्ति धर्म से विमुख होता है तो उसमे कुरीतियाँ आती हैं. भ्रष्टाचार भी ऐसी ही कुरीति है,
समय मिले तो इस ब्लॉग को देखकर अपने विचार अवश्य दे
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dr. dalsingar ji se sahmat
mangal ji bahut kam shabdon me aapne bahut kuchh kah diya hai.janta neta adhikari sbhi doshi hai kyonki sabka lalch sir chadhkar bo,raha hai.sarthak aalekh
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