4/05/2011 06:14:00 pm
PRIYANKA RATHORE
5 comments
बहा के उनका सामान दरिया में
सोचा था मुक्त हो जाऊँगी
अहसासों के दलदल से .
लेकिन यह तो वह आग है
जो न जलती है ना बुझती है
बस सुलगती जाती है .....
उस जीव की तरह -
जो मुक्त हुआ भी
लेकिन मुक्त हो ना पाया
शरीर के छूट जाने पर भी
मोह में जकड़ा बंधा सा .......
प्रियंका राठौर
5 टिप्पणियाँ:
isi ka naam ziwan hai aur hum sansarikta se jab tak jude hain is bandhan se nahi chhut payengen .. koi sath ho ya sath chhut chuka ho kisi ka yaden to aani hain .......behtreen prstuti
bahut sundar post dil ko chhoo gayi
VERY GOOD!
क्या बात है .
वाह .
VERY GOOD!
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