गुजिश्ता हफ़्तों में देश 'जनगणना' से निपटा है . कुछ आंकड़े डरा रहे है और कुछ खुश होने की वजह बन रहे है . हमारे देश के बरसो पुराने मित्र सोवियत रूस में भी लगभग हमारे साथ ही इस महा आयोजन को संपन्न किया है . उनके यहाँ तस्वीर उलट है . पुरुषों पर महिलाओ का अनुपात चोकाने वाला है . महिलाओ की संख्या पुरुषों से कही ज्यादा है . फेसबुक पर मेरी रुसी मित्र ने मेरी बधाई के जवाब में एक रोचक जानकारी दी है कि पहली बार 'वोदका ' पीने वालो कि संख्या कम हुई है और विस्की पीने वालो की तादात बड़ी है और अंग्रजी में छपने वाला अखबार 'द मोस्को टाइम्स ' इसके पीछे अमरीकी फिल्मो को जिम्मेदार मानता है .
फिल्मे समाज पर कितना असर डालती है ? इस बहस की गूंज अक्सर सुनाई देती है और अंत होता है किसी नकारात्मक उदाहरण के साथ . फिल्मो को सर्टिफिकेट देने वाली संस्था ( सेन्ट्रल बोर्ड ऑफ़ फिल्म शर्टि फिकेशन ) के आंकड़े देश के 'व्यस्क ' होने के रुझान देते है . 2010 में हिंदी की कुल 215 फिल्मे रीलीज हुई थी जिसमे से61फिल्मो को (a ) सर्टिफिकेट मिला था . तमिल की 202 शीर्षक में से 50 इस श्रेणी में आई थी . तेलुगु की कुल 181 रीलीज में से 45 व्यस्को के लिए थी .
गौर करने लायक बात है कि व्यस्क फिल्मो कि औसत कमाई , सामान्य फिल्मो से ज्यादा है . अब सेंसर बोर्ड ने भी तय किया है कि फिल्मो के द्रश्य काटे बगेर ही '' A '' सर्टिफिकेट दे दिया जाए . सुप्रीम कोर्ट पहले ही बगेर शादी किये साथ रहने को स्वीकार चूका है . भारतीय समाज इत्मीनान से परिवर्तनों को अपना रहा है . इस प्रक्रिया में फिल्मो के योगदान को नकारा नहीं जा सकता है .
लगे हाथ ---लिव इन रिलेशन का सबसे सुन्दर उदाहरण है नवाब पटौदी का परिवार . सैफ -करीना के बाद सैफ कि बहन सोहा ने इस परंपरा को आगे बढाया है . भारत - श्रीलंका फायनल के वक्त वे पुरे समय अपने मित्र कुनाल खेमू के साथ भारतीय टीम का हौसला बड़ा रही थी .
रविवार, 10 अप्रैल 2011
केवल व्यस्को के लिए ....?
4/10/2011 08:45:00 pm
रजनीश जे जैन
3 comments
3 टिप्पणियाँ:
सामाजिक पतन को बढ़ावा देते व्योस्था को बदलने की जरुरत है..
ख़ुशी है की पहली झलक हमने जंतर मंतर पर देखी..
सुन्दर रचना
व्यवस्था में बदलाव की जरूरत है और इसकी शुरुआत हो चुकी है |
धन्यवाद |
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rochak aalekh vaankde .badhai vicharniy prastuti ke liye .
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