शनिवार, 16 अप्रैल 2011

प्रेम काव्य-महाकाव्य --तृतीय सुमनान्जलि--प्रेम-भाव- रचना..मैं पन्छी आजाद गगन का... ---डा श्याम गुप्त ......

 

  प्रेम काव्य-महाकाव्य--गीति विधा  --     रचयिता---डा श्याम गुप्त  

  -- प्रेम के विभिन्न  भाव होते हैं , प्रेम को किसी एक तुला द्वारा नहीं  तौला जा सकता , किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जासकता ; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत  सुमनांजलि- प्रेम भाव को ९ रचनाओं द्वारा वर्णित किया गया है जो-प्यार, मैं शाश्वत हूँ, प्रेम समर्पण, चुपके चुपके आये, मधुमास रहे, चंचल मन, मैं पंछी आजाद गगन का, प्रेम-अगीत व प्रेम-गली शीर्षक से  हैं |---प्रस्तुत है  प्रेम का एक और भाव --सप्तम रचना...मैं पन्छी आजाद गगन का...

मैं पंछी आजाद गगन का,
 मुक्त पवन में उड़ना जानूं |
तेरे सोने के पिंजरे की ,
रीति-नीति कैसे पहचानूं ||
 
प्यार अगर करते हो मुझसे,
बंधन-मोह छोड़ना होगा |
मुक्त गगन में फैलाकर पर,
साथ साथ यूं उड़ना होगा ||
 
सिंहासन की चाह नहीं है,
वैभव का उत्साह नहीं है 
माया के सर्वोच्च शिखर  पर
पहुचूँ -मेरी राह नहीं है ||

मेरी छोटी सी कुटिया में,
तुमको स्वर्ग सजाना होगा |\
प्यार अगर करते हो मुझसे,
पर फैला कर उड़ना होगा ||
 
सोने के पिंजरे में रहकर,
यह मन अपनापन खोता है |
तुम कैसे यह भूल गए , मन-
तेरे सपनों में सोता है ||
 
सोने चांदी का तो तुमको,
मोह नहीं है ,मुझे पता है |
प्रेम-प्रीति ईश्वर की इच्छा,
अपनी तो यह नहीं खता है ||
 
प्यार में कोइ शर्त न होती,
यह तो हमें समझना  होगा |
प्यार अगर है हमको तो, इस-
मन बंधन में बंधना होगा ||
 
तेरे मुक्त पवन आँगन में,
फैलाकर पर,उड़ती गाऊँ |
जैसी भी हो तेरी कुटिया ,
प्यारा सा इक नीड़ बसाऊँ ||
 
प्यार अगर करते हो मुझसे,
मेरे मन में रहना होगा |
मेरा मन सोने का मन है,
इसमें तो बंधना ही होगा |
 
हम पंछी आजाद पवन  के,
मुक्त गगन है अपना अंतर |
साथ साथ यूं उड़ते गायें ,
नील गगन में फैलाकर पर ||
 
मैं पंछी आजाद गगन का,
फैलाकर पर उड़ना होगा |
मेरा मन सोने का मन है ,
इस पिंजरे में बंधना होगा ||

2 टिप्पणियाँ:

आशुतोष की कलम ने कहा…

आप के इस प्रेम काव्य के बंधन में में बांध कर रह गया हूँ...
आप का ये संकलन (सम्पूर्ण) कैसे प्राप्त किया जा सकता है???

poonam singh ने कहा…

sundar rachna....

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