-- प्रेम के विभिन्न भाव होते हैं , प्रेम को किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता , किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जासकता ; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत सुमनांजलि- प्रेम भाव को ९ रचनाओं द्वारा वर्णित किया गया है जो-प्यार, मैं शाश्वत हूँ, प्रेम समर्पण, चुपके चुपके आये, मधुमास रहे, चंचल मन, मैं पंछी आजाद गगन का, प्रेम-अगीत व प्रेम-गली शीर्षक से हैं |---प्रस्तुत है प्रेम का एक और भाव --सप्तम रचना...मैं पन्छी आजाद गगन का...
मैं पंछी आजाद गगन का,
मुक्त पवन में उड़ना जानूं |
तेरे सोने के पिंजरे की ,
रीति-नीति कैसे पहचानूं ||
प्यार अगर करते हो मुझसे,
बंधन-मोह छोड़ना होगा |
मुक्त गगन में फैलाकर पर,
साथ साथ यूं उड़ना होगा ||
सिंहासन की चाह नहीं है,
वैभव का उत्साह नहीं है
माया के सर्वोच्च शिखर पर
पहुचूँ -मेरी राह नहीं है ||
मेरी छोटी सी कुटिया में,
तुमको स्वर्ग सजाना होगा |\
प्यार अगर करते हो मुझसे,
पर फैला कर उड़ना होगा ||
सोने के पिंजरे में रहकर,
यह मन अपनापन खोता है |
तुम कैसे यह भूल गए , मन-
तेरे सपनों में सोता है ||
सोने चांदी का तो तुमको,
मोह नहीं है ,मुझे पता है |
प्रेम-प्रीति ईश्वर की इच्छा,
अपनी तो यह नहीं खता है ||
प्यार में कोइ शर्त न होती,
यह तो हमें समझना होगा |
प्यार अगर है हमको तो, इस-
मन बंधन में बंधना होगा ||
तेरे मुक्त पवन आँगन में,
फैलाकर पर,उड़ती गाऊँ |
जैसी भी हो तेरी कुटिया ,
प्यारा सा इक नीड़ बसाऊँ ||
प्यार अगर करते हो मुझसे,
मेरे मन में रहना होगा |
मेरा मन सोने का मन है,
इसमें तो बंधना ही होगा |
हम पंछी आजाद पवन के,
मुक्त गगन है अपना अंतर |
साथ साथ यूं उड़ते गायें ,
नील गगन में फैलाकर पर ||
मैं पंछी आजाद गगन का,
फैलाकर पर उड़ना होगा |
मेरा मन सोने का मन है ,
इस पिंजरे में बंधना होगा ||
2 टिप्पणियाँ:
आप के इस प्रेम काव्य के बंधन में में बांध कर रह गया हूँ...
आप का ये संकलन (सम्पूर्ण) कैसे प्राप्त किया जा सकता है???
sundar rachna....
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