मंगलवार, 22 मार्च 2011

प्रेम काव्य....गीति-विधा महाकाव्य ....डा श्याम गुप्त...

    प्रेम काव्य-महाकाव्य--गीति विधा    
           रचयिता---डा श्याम गुप्त


भारतीय ब्लॉग लेखक मंच पर .... प्रेम महाभारत  के उपरान्त....प्रेम जैसे विशद विषय को आगे बढाते हुए व उसके विविध रंगों को विस्तार देते हुए ...आज से हम  महाकाव्य "प्रेम काव्य " को क्रमिक रूप में पोस्ट करेंगे । यह गीति विधा महाकाव्य में प्रेम के विभिन्न रूप-भावों -- व्यक्तिगत से लौकिक संसार ...अलौकिक ..दार्शनिक  जगत से होते हुए ...परमात्व-भाव एवं मोक्ष व अमृतत्व तक --का गीतिमय रूप में निरूपण  है | इसमें  विभिन्न प्रकार के शास्त्रीय छंदों, अन्य छंदों-तुकांत व अतुकांत  एवं विविधि प्रकार के गीतों का प्रयोग किया गया है |
          यह महाकाव्य, जिसकी अनुक्रमणिका को काव्य-सुमन वल्लरी का नाम दिया गया है -- वन्दना, सृष्टि, प्रेम-भाव, प्रकृति प्रेम, समष्टि प्रेम, रस श्रृंगार , वात्सल्य, सहोदर व सख्य-प्रेम, भक्ति श्रृंगार, अध्यात्म व अमृतत्व ...नामसे  एकादश सर्गों  , जिन्हें 'सुमनावालियाँ' कहा गया है , में निरूपित है |
            प्रस्तुत है प्रथम सुमनांजलि -वन्दना--१० रचनायें..  जिसमें प्रेम के सभी देवीय व वस्तु-भावों-गुणों की वन्दना की गयी  है   --- सर्व प्रथम गणेश व सरस्वती वंदना आदि-महाकवियों , साहित्यकारों का नियम रहा है .....

     १-गजानन वन्दना 
कर्म प्रधान जगत में, जग में,
प्रथम पूज्य हे सिद्दि-विनायक!
कृपा करो हे बुद्धि-विधाता,
रिद्धि-सिद्धि दाता गणनायक ||

श्याम ह्रदय को पुष्पित करदो,
 प्रेम-शक्ति से यह मन भर दो |
आदि लेख ,लेखक हे गणपति !
लेखन प्रेम-पयोनिधि करदो  ||

पंथ प्रेम का महा कठिन, प्रभु,
सिद्धि-सदन तुम सिद्धि प्रदाता |
द्वार पडा  हे गौरी नंदन !
भक्ति-कृपा वर दो  हे दाता || 

   २-सरस्वती वंदना... 
हे मानस की देवि शारदे !
मानस में अवतार धरो माँ |
मन मंदिर  में कविता बनकर ,
जीवन  का उद्धार करो माँ ।

जले प्रेम की ज्योति ह्रदय में,
हे माँ, तेरी कृपा दृष्टि हो |
ऐसी भक्ति भरो इस उर में ,
प्रेम मयी यह सकल सृष्टि हो॥।

तेरी चरण धूलि की मसि से ,
ह्रदय पत्र पर अन्कित हो जो ।
मन की कलम लिखे जो उसमें,
छंद ताल लय सुर संगम हो ॥ 

अपनी स्वच्छ धवल शोभा की,
एक किरन का मुझको वर दो ।
सारे कलुष दोष मिट जायें,
शुभ्र ज्योत्सना मन में भर दो ॥

तेरे दर पर खडा ’श्याम है,
कागज़ कलम दवात लिये मां ।
प्रेम ज्योति जग में बिखराने,
आशिष देदो, आग्या  दो मां ॥     ---क्रमश: वंदना ......




5 टिप्पणियाँ:

PRIYANKA RATHORE ने कहा…

bahut sundar....

हरीश सिंह ने कहा…

अपनी स्वच्छ धवल शोभा की,
एक किरन का मुझको वर दो ।
सारे कलुष दोष मिट जायें,
शुभ्र ज्योत्सना मन में भर दो ॥
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ati sundar

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद..हरीश जी व प्रियन्का जी....यह श्री गणेश है...

Anita ने कहा…

bahut sundr bhavabhivykti !

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद अनिता जी....

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