बुधवार, 23 मार्च 2011

माया को सुकून समझा,उस में ही उलझ गया



क्या से
क्या हो गया
पहले दाल रोटी में
खुश था
अब पकवानों से भी
पेट नहीं भरता
पहले कोई शिकायत
नहीं थी
अब शिकायतों का
अम्बार लग गया
आराम से बैठता था
चैन से सोता था
अब निरंतर दौड़ रहा
नींद के आगोश में
मुश्किल से खोता
पता है मुझे ये सब
क्यों हुआ
तृष्णा के जाल में
फँस गया
जितना निकलना
चाहता
उतना ही फंसता
जाता
तृप्त से अतृप्त हो
गया
भ्रम जाल में फँस
गया
और पाने की चाहत में
खुद को भूल गया
माया को सुकून
समझा
उस में ही उलझ
गया
जीवन रहस्य समझ
गया 
23-03-03
479—149-03-11

1 टिप्पणियाँ:

shyam gupta ने कहा…

देर आयद-दुरुस्त आयद....

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