हम अक्सर शिकायत करते हैं कि अगर हमें सुविधाएं मिलती तो हम भी कुछ बन कर दिखा देते। पर अगर हम अपने आस-पास ध्यान से देखें तो हमें ऐसे अनेक लोग मिल जाएंगे, जिनके पास सुविधा नाम की कोई चीज नहीं थी, पर उन्होंने वह काम कर दिखाया जो सभी सुविधाओं को होते हुए भी हम नहीं कर पाते हैं। ऐसा ही एक नाम है सिंधुताई सपकाल का।
पूर्वी महाराष्ट्र के नवरगांव के गरीब चरवाहा परिवार में जन्मी 62 वर्षीय सिंधुताई सपकाल ने सिर्फ कक्षा चार तक ही शिक्षा प्राप्त की है। सिंधुताई को प्यार से सभी माई कह कर बुलाते हैं। सिंधुताई से माई तक का यह सफर कांटों भरा था। उस समय की परंम्परा के अनुसार सिंधुताई का विवाह 9 वर्ष की अल्प आयु में 30 वर्ष के युवक के साथ कर दिया गया था। सिंधुताई को पढ़ने का बहुत शौक था। इसलिए जिस पेपर में पति सामान लपेट कर घर लाते, सामान रखने के बाद वह उसे पढ़ने लगती। पति को उनकी यह बात कभी अच्छी नहीं लगती थी, इसलिए अक्सर उन्हें इस अपराध के लिए पति के हाथों पिटाई सहनी पड़ती। सिंधुताई कहती है कि ऐसा इसलिए होता था क्योंकि पति को लगता था कि इस तरह मैं उन्हें नीचा दिखाना चाहती हूं, जबकि ऐसा था नहीं, मैं सिर्फ और सिर्फ पढ़ना चाहती थी बस!
तीन बेटों को जन्म देने के उपरांत चौथी बार जब वे गर्भवती हुई तो पति ने उन्हें छोड़ दिया। इसलिए चौथे बच्चे का जन्म जो बेटी थी एक गौशाला में हुआ। जहां उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था इसलिए पास पड़े पत्थर से गर्भनाल काटना पड़ा। मां ने जब बेटी के बारे में सुना तो वे उसे और उसकी नवजात बेटी को अपने साथ ले गई। लेकिन उनके पास भी इतने साधन नहीं थे कि वे अपनी बेटी और नवासी का पालन-पोषण कर पातीं। अपनी जीविका चलाने के लिए सिंधुताई सड़कों, रेलवे प्लेटफार्म और गाड़ियों में गाना गाकर भीख मांगती थीं। अपनी परिस्थितियों से तंग आकर उन्होंने दो बार आत्महत्या का भी प्रयास किया। पहली बार असफल रही। दूसरी बार जब वे आत्महत्या करने जा रही थी बेटी की रोने की आवाज ने उनके बढ़ते कदमों को रोक दिया और यही वह पल था जिसने उनकी पूरी सोच को बदल दिया तथा जीने का एक उद्देश्य भी दे दिया। उन्होंने निश्चय किया कि उन्हें न सिर्फ अपनी बेटी ममता के लिए बल्कि उस जैसे अनेक बच्चों के लिए जीना है, जिन्हें समाज अपनाने को तैयार नहीं है।
पिछले तीस सालों में सिंधु ताई 1000 से ज्यादा अनाथ और अनचाहे बच्चों का पालन-पोषण बहुत ही संघर्ष पूर्ण जीवन जीते हुए किया है। इसके लिए उन्होंने वह सब कुछ किया जो वह अपनी बेटी को पालने के लिए करती थी। कई ऐसे मौके भी आए जब अपने बच्चों का पेट पालने के लिए उनके पास पर्याप्त पैसे नहीं होते थे, तब छोटे बच्चों के दूध में पानी मिला देती थी और बड़े बच्चों के खाने में सब्जियों की कटौती होती थी।
सिंधुताई के इतने बड़े परिवार को चलाने के लिए कोई व्यवसायिक प्रबंधन कार्य नहीं करता बल्कि उन्ही के परिवार के तीस बच्चे जिनकी उम्र तीस वर्ष या उससे थोड़ी ज्यादा है इसे चलाने में माई की मदद करते हैं।
अन्नत महादेवन की फिल्म मी सिंधुताई सपकाल ने अचानक उन्हें पूरी दुनिया में लोकप्रिय बना दिया है। आज वे लोगों की प्रेरणा स्त्रोत बन गई है। देश-विदेश में लोग उन्हें भाषण देने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं। उनके भाषण जीवन को प्रेरणा देने वाले गानों से भरे होते हैं। वे कहती है कि भाषण दिए बिना राशन नहीं मिलता। वे अपने हर भाषण में अपने बच्चों के घर और राशन के लिए अनुदान मांगती हैं। अगर आप भी इन बच्चों की मदद करना चाहते हैं या सिंधुताई को भाषण देने के लिए आमंत्रित करना चाहते हैं तो mamta@mysaptsindhu.org पर सम्पर्क कर सकते हैं।
-प्रतिभा वाजपेयी
बुधवार, 2 मार्च 2011
मी सिंधुताई सपकाल
3/02/2011 09:34:00 am
pratibha
5 comments
5 टिप्पणियाँ:
बहुत प्रेरक व्यक्तित्व से परिचय करवाया है। धन्यवाद।
प्रतिभा आपने बहुत ही प्रेरणादायक लेख लिखा है. जीवन में संघर्ष किया जाय तो कुछ भी असंभव नहीं है. आज के दौर में जो लोग अच्छे कार्य करके भी गुमनाम जीवन जी रहे है. ऐसे लोंगो को मिडिया भी प्रकाश में नहीं लाता..क्योंकि मिडिया को विज्ञापन चाहिए. जो समाज को सही दिशा दिखा रहे हैं. उन लोंगो को इस मंच से आगे लाना होगा ताकि उनके जीवन से लोंगो को कुछ सीख मिले और प्रेरणा ले सके . सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
प्रतिभा जी आपने बहुत अच्छा प्रेरणादायक पोस्ट लिखा है
मीडिया को ऐसे प्रेरक व्यक्तित्वों का परिचय आम जनता से कराना चाहिए .आपकी पोस्ट बहुत सार्थक पोस्ट है .शुक्रिया .
आपकी पोस्ट बहुत सार्थक पोस्ट है .शुक्रिया
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