शुक्रवार, 18 मार्च 2011

पिचकारी के तीर...डा श्याम गुप्त....


            पिकारी के तीर

लकुटि लिए सखियाँ खडीं,बदला आज चुकांय |
सुधि बुधि भूलें श्याम जब ले पिचकारी आँय ||

आज न मुरलीधर बचें , राधा मन मुसुकांय |
दौड़ी सुधि बुधि भूलकर, मुरली दई बजाय ||

भ्रकुटि तानि बरजै सुमुखि, मन ही मन ललचाय |
पिचकारी से श्याम की, तन मन सब रंगि जाय ||

रंग भरी पिचकारि ते, वे छोड़ें रंग धार |
वे घूंघट की ओट ते,  करें नैन के वार  ||

गोरे गोरे अंग पर, चटख चढ़े हैं रंग |
रंगीले आँचल उड़ें , जैसे नवल पतंग ||

भरि पिचकारी सखी पर, वे रंग-बान चलायं |
लौटें नैनन-बान भय , स्वयं सखा रंगि जायं ||

चेहरे सारे पुत गए, चढ़े सयाने रंग |
समझ नहींआवै कोई,को सजनी को कंत ||

लाल  हरे  पीले  रंगे,  रंगे  अंग प्रत्यंग |
कज्जल-गिरि सी कामिनी,चढो न कोऊ रंग ||

भये लजीले श्याम दोऊ, गोरे गाल गुलाल |
गाल गुलाबी होगये, भयो गुलाल रंग लाल ||

भक्ति ज्ञान और प्रेम की मन में उठे उमंग |
कर्म भरी पिचकारि ते,रस भीजै अंग अंग  ||

यह वर मुझको दीजिये, चतुर राधिका सोय |
होली खेलत श्याम संग, दर्शन श्याम को होय ||


होली ऐसी खेलिए, जरैं त्रिविधि संताप |
परमानंद प्रतीति हो, ह्रदय बसें प्रभु आप ||

7 टिप्पणियाँ:

Dr. Yogendra Pal ने कहा…

बहुत अच्छा लिखा आपने

please आगे के लेखों में शीर्षक के साथ अपना नाम ना लिखें, वह प्रस्तुतकर्ता में दिखाई दे ही रहा है और इस लेख में "कविता","त्यौहार" मेजर टैग का प्रयोग किया जाना चाहिए था

पाठकों पर अत्याचार ना करें ब्लोगर

100 Arms AK ने कहा…

बच्चों को मारना पीटना गलत बात है .
आप लोग बच्चों को मारना कब छोड़ेंगे ?

saurabh dubey ने कहा…

accha kavita holi ki badhai

devanshukashyap ने कहा…

होली की हार्दिक शुभकामनायें |

devanshukashyap ने कहा…

कविता में श्री कृष्ण का विवरण पाकर अच्छा लगा | यही वह नायक है जिससे होली सुन्दर लगती है | आजकल इस पर्व को विकृत रूप से खेलते देख दुख महसूस होता है |

shyam gupta ने कहा…

सही कहा, कश्यप जी...विक्रति सभी क्षेत्रों में है तो यह कैसे बच सकता है...धन्यवाद...

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद सौरभ जी,एके-१०० व योगेन्द्र पाल जी..

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