गुरुवार, 31 मार्च 2011

विवाह






"शहनाई के रोमांचक स्वरों , घर की मांगलिक सज्जा प्रियजनों के साक्षी और आशीर्वाद से गुंजित वातावरण में अग्नि के सामने मन्त्रों का उच्चारण होता है और दो ह्रदय एक हो जाते है ! उस समय भावनाये संस्कारों से उत्पन्न होती हैं - ह्रदय एक अनजान व्यक्ति को अपना सब कुछ मान लेता है ! जिसको अपना मान लिया फिर उसकी हर बात को अपना मानने के लिए मन तत्पर रहता है ! उसे स्वीकार होता है - साथी का हर आग्रह , हर अधिकार और बहुत से अवगुण भी ! विवाह वेदी पर बैठे जो प्रतिज्ञा की थी वह अजन्म मन के किसी कोने में अपना अधिपत्य जमाये रहती है ! सुख - दुःख , अच्छा - बुरा , सब बाटेंगे हम - यही सच्चाई  याद रह जाती है और एक प्यार व विश्वास का रिश्ता कायम हो जाता है ! "





प्रियंका राठौर


6 टिप्पणियाँ:

गंगाधर ने कहा…

सही कहा प्रियंका जी, मंडप में जो मन्त्र उच्चारण किये जाते है, जो संस्कार सिखाये जाते हैं. यदि लोग उसे ग्रहण करे तो जीवन सुखमय होने के साथ साथी के प्रति समर्पण भी बढेगा.

kirti hegde ने कहा…

sundar vichar aapka jivan sukhmay ho.

नेहा भाटिया ने कहा…

sundar vichar

poonam singh ने कहा…

बहुत अच्छे विचार, प्रियंका जी आपका जीवन साथी आपसे बहुत खुश रहेगा. शादी हो गयी की नहीं.

shyam gupta ने कहा…

सही कहा....

PRIYANKA RATHORE ने कहा…

aap sabhi ka bahut bahut dhanybad...

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