देश में महंगायी तेजी से बढ़ रही है। सरकार इस पर लगाम लगाने की बजाय जरुरी चीजों में टैक्स बढ़ाने की जल्द घोषणा कर और महंगायी बढ़ने के संकेत दे दिये हैं। पेस है महंगायी से परेशान एक इन्सान पर कविता। कृपया पढ़कर हमें बतायें कि क्या हमारा कहना सत्य है या नही।
कटोरी लिए
फैलाए हाथ
दे दे कोई पैसे
या भोजन
बहुत भूखा हूँ
तकदीर का टूटा हुआ
शीशा हूँ
ये पसलियां मेरी
जीवन गाथा हैं !
बिगड़ते हालात् ,
दुख और तूफान से
नथा पड़ा हूँ ।
हे बाबू !
मेरे बच्चे बिलख रहे हैं
भूख से,
मेरे ईश्वर
हे बाबू !
दया करो
गिड़गिड़ाते हाथ से
अटपटी जुबान से
मुझझे कहा-
उद्योगपति
जो जमीं पर
पैर नहीं रखते हैं
मांगने पर देते नही
कहते-
भाग-भाग
कुत्तों सा भगाते हैं
वेदना नही समझते
इन्सान की,
रईस-सामाजिक
बहुत बनते हैं
बाबू !
भैया !
मैया !
मेरे पेट पर
पैर मत मारो
दे दो कौर भोजन
बहुत
भूखा हूँ ।।
- मंगल यादव, जौनपुर (उ0प्र0)
बुधवार, 9 मार्च 2011
मै भूखा हूं
3/09/2011 05:44:00 pm
mangal yadav
4 comments
4 टिप्पणियाँ:
Aap bilkul sahi ho bhai
सुन्दर अभिव्यक्ति, एक अच्छी कविता के लिए बधाई.
लगता है किसी सच्चे भिखारी से आपकी मुलाकात हो गई थी! मैंने कुछ एक भिखारियोँ से बातचीत की है जिन्हें मैं अपने काम के दौरान नियमित देखता हूँ। उनमें से प्रत्येक की दैनिक आमदनी 250 रुपए से 400 रुपए तक है। इतना तो दिन भर रिक्शा चलाने वाला या कोई मजदूरी करने वाला व्यक्ति भी बमुश्किल कमा पाता है। मैं व्यक्तिगत रूप से ऐसे भिखारियोँ को प्रोत्साहित नहीं करता जो शारीरिक रूप से सक्षम हैं। अक्षम व्यक्तियों की बात दीगर है। मेरा यह अनुभव रहा है कि जो सच में जरूरतमंद हैं वो माँगने से अधिक हाथ पैर चला कर कमा लेने में विश्वास रखते हैं।
महँगाई और भिखारी में सीमित संबंध है। पिछले दिनों महँगाई बेतहाशा बढ़ी है। उसका कारण एक ओर तो सरकार की असफल नीतियाँ हैं वहीँ लोगों की बढ़ी हुई क्रय शक्ति भी है। हमारे देश में लोगों में अभी परिपक्वता आने में काफी समय लगेगा। ऐसा नहीं है कि हमारी आबादी एकाएक दुगुनी या तिगुनी हो गई है बल्कि इसका कारण कुछ और है। एक तो आमदनी बढ़ने से लोगों की अनावश्यक खरीददारी की प्रवृत्ति बढ़ी है वहीँ लोगों में अधिक मुनाफा के लिए जमाखोरी भी बढ़ी है। महाराष्ट्र में चीनी का अनावश्यक भंडार इस बात का अच्छा उदाहरण है। इस पर विस्तार से मैं बाद में लिखूँगा।
मौजूदा स्थिति को मेरा अनुमान है कि हमें अभी और बदतर स्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए।
bhaut achha likha mangal bhai....
Praveen Kumar
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