कविता लिखते
काफी अरसा हो गया
अपने को बड़ा भारी कवी
समझने लगा
गलतफहमी में जीने लगा
गलतफहमी में जीने लगा
भावनाओं का पंडित हूँ
बताने का मौक़ा खोजने लगा
किसी पत्रिका में
कविताओं के छपने का
रास्ता ढूँढने लगा
तभी एक पुराने कवी से
मुलाक़ात हुई
मनो इच्छा उनको बतायी
उन्होंने फ़ौरन राह दिखायी
पहले कुछ शर्तें लगायी
उन्हें गुरु मानना होगा
उनकी कविताओं की
तारीफ़ में
,कुछ लिखना होगा
समझ नहीं आये फिर भी
"बहुत खूब"कहना होगा"
मेरी कविताओं को
समझने में जोर लगाना पड़े ,
समझने में जोर लगाना पड़े ,
सम कालीन कविता लगे
इसलिए गूढ़ शब्दों का
दूसरे से निकाला
उलटे पैर लौट चला
निरंतर जैसे लिखता था
आज फिर वैसे ही
लिख डाला
08—03-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
(समकालीन कवियों,
उनकी कविताओं को नहीं समझने की
ध्रष्टता के लिए ह्रदय से क्षमा याचना)
(समकालीन कवियों,
उनकी कविताओं को नहीं समझने की
ध्रष्टता के लिए ह्रदय से क्षमा याचना)
2 टिप्पणियाँ:
सुन्दर रचना आभार
स्वागत, अच्छी रचना.
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