देखता लोगों को
करते हुए अर्पित
फूल और माला
दूध और मेवा
और न जाने क्या-क्या
और न जाने क्या-क्या
हाँ तब जगती है एक उम्मीद
कि
शायद तुम हो
पर जैसे ही लांघता हूँ चौखट तुम्हारा
तार-तार हो जाता है विश्वास मेरा
टूट जाता है समर्पण तुम्हारे प्रति
जब देखता हूँ कंकाल सी काया वाली
उस औरत को
जिसके स्तनों को मुँह लगाये
उसका बच्चा कर रहा था नाकाम कोशिश
अपनी क्षुधा मिटाने को
हाँ उसी चौखट के बाहर
लंबी कतारे भूखे और नंगो की
अंधे और लगड़ों की.....
वह जो अजन्मी
खोलती आंखे कि इससे पहले
दूर कहीं सूनसान में
दफना दिया जाता है उसे
फिर भी खामोश हो तुम.....
एक अबोध जो थी अंजान
खोलती आंखे कि इससे पहले
दूर कहीं सूनसान में
दफना दिया जाता है उसे
फिर भी खामोश हो तुम.....
एक अबोध जो थी अंजान
इस दुनिया दारी से
उसे कुछ वहशी दरिंदे
रौंद देते है
कर देते हैं टुकड़े- टुकड़े
कर देते हैं टुकड़े- टुकड़े
अपने वासना के तले
करते हैं हनन मानवता
और तुम्हारे विश्वास का........
तब अनवरत उठती वह चीत्कारखून क़ी वे निर्दोष छींटे
करुणा से भरी वह ममता
जानना चाहती है
क्या सच में तुम हो ????????
8 टिप्पणियाँ:
सच को बयां करती दिल को झंझोड़ने वाली रचना, सब जानते हैं यह सच्चाई है, फिर मुह मोड़ने को विवश हैं लोग. गरीबी उन्मूलन के लिए तमाम योजनायें चलाई जा जा रही है. पर करोडो अरबों रुपये कहा जा रहे हैं पता नहीं.
बहुत सटीक और मार्मिक कविता| धन्यवाद|
........
तब अनवरत उठती वह चीत्कार
खून क़ी वे निर्दोष छींटे
bahut marmik prastuti ..
मार्मिक लिखा है आपने
----मार्मिक कथन तो है -- परन्तु अनास्था मूलक, वास्तविकता से दूर....यह स्थिति ईश्वर ने नहीं उत्पन्न की, न ईश्वर किसी की गरीबी, अग्यान, दूर करने आता है /आयेगा... वह आपके कर्मों का उचित फ़ल देता है..उसके होने न होने का इस अवस्था से कोई सम्बंध नही....आप(एवं ये सभी जो आपको दीन-हीन दिखाई देते हैं और आपको दया आती है) अपने कर्मों-अकर्मण्यता का फ़ल ही भुगतते हैं किसी अन्य की करनी का नही, अन्यथा आप स्वयं( व अन्य सभी लोग) अपना सारा धन उसे क्यों नहीं देदेते ? सिर्फ़ मार्मिक कथन से क्या होता है...
---जो विश्वास तार-तार होजाये उसे विश्वास नहीं कहा जाता स्वार्थ, मतलब कहा जाता है...
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----मार्मिक कथन
marmik kavita.
jameen se judkar hee vyakti aisa soch sakta hai.,.,
accha likha hai aapne,.,
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