शुक्रवार, 11 मार्च 2011

प्रेम हर किसी के अंदर है--- अवनीश कुमार

प्रेम एक ऐसा शब्द जिसे हर कोई सुनता है और हर किसी के लिए इसके मायने भी अलग-अलग है। अगर हम अपनी मां के प्रेम के बारे में सोचें, तो उसका अलग आनन्द है, लेकिन अगर हम अपनी प्रेमिका के प्रेम के बारे में बात करते हैं, तो हमारी अलग सोच होती है। प्रेम को हम अलग-अलग रूप से देखते है।ईश्क और मोहब्बत करना प्रेम नहीं है।
प्रेम हर कोई करता है, सिर्फ औरत व पुरूष का संबंध ही प्रेम नहीं है। प्रेम किसी भी रूप में किसी से भी हो सकता है। मेरी नजर में प्रेम की एक परिभाषा है,किसी को भी सच्चाई, ईमानदारी,विश्वास, निस्वार्थ भाव से किसी का किसी को भी चाहना प्रेम हो सकता है।
प्रेम हर किसी से हो सकता है। पृथ्वी पर उपस्थित या पृथ्वी से बाहर की किसी भी जीव व वस्तु के प्रति सम्मोहन प्रेम हो सकता है। प्रेम किसी से लेने का नहीं देने का नाम होता है। इसी तरह यदि हम वृक्षों को बचाने के बारे में सोचते है, तो उनके प्रति यह हमारा प्रेम है। लेकिन आजकल प्रेम के मायने बदल गये हैं। हमारे जीवन से प्रेम गायब होता जा रहा है। हम लोगों में से ज्यादातर लोग प्रेम को केवल स्त्री-पुरूष के संबंध में देखते हैं, लेकिन यह बिल्कुल निरर्थक सोच है। हम अपने घर पर कोई भी जानवर पालते हैं, उसकी हम सेवा करते है। वह भी प्रेम का ही एक रूप है। हम भगवान को मानते व पूजते है, वह भी प्रेम का ही एक रुप है। हम अपने बच्चों व परिवार से प्रेम करते है। वह प्रेम है, हम अपने दोस्तों का महत्तव अपनी जिन्दगी में समझते है। वह भी प्रेम है।अगर हम देखें तो हमारा पूरा जीवन प्रेम से भरा हुआ है। बस हमें इसे पहचानने की जरूरत है..


यह पोस्ट अवनीश कुमार द्वारा भेजी गयी है..

5 टिप्पणियाँ:

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

Nice post.

Dr. Yogendra Pal ने कहा…

बात सही है और सर्वविदित भी है, पर अनुपालन में समस्या है :)

वैसे कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो प्रेम के लायक नहीं होते

हरीश सिंह ने कहा…

प्रेम मय महाभारत में आपका स्वागत..... अच्छी रचना. आभार.
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kirti hegde ने कहा…

रहिमन धागा प्रेम का ........................... बधाई.

गंगाधर ने कहा…

aabhar

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