सोमवार, 14 मार्च 2011

जब कभी इंसानी शराफत से मेरा यकीन हिला तो उसे बहनों के सच्चे कमेंट्स ने ही बहाल किया है




मैंने हिंदी ब्लॉग जगत को अपनी ज़िन्दगी का बेहतरीन एक साल दिया. इसे कुछ नए ब्लॉग ऐसे दिए जो उन विषयों पर पहले नहीं थे . लोगों ने भी मुझे अपना भरपूर प्यार दिया और यह प्यार उन्होंने मुझे उस हाल में दिया जबकि मैंने उनकी मान्यताओं की धज्जियाँ उड़कर रख दीं . यह ठीक है कि मैंने ऐसा इसलिए किया की मैं उन्हें ग़लत मानता हूँ लेकिन ऐसा मेरा मानना है, न कि हरेक का. इस सब के बीच मुझे सभी ब्लॉगर्स ने अपने दिल में बिठाया . जो लोग मुझसे नफरत करते हैं , वास्तव में वे भी मुझे अपने दिल में जगह दिए हुए हैं . मैं उनकी भी क़द्र करता हूँ और उनसे भी प्यार ही करता हूँ . मैं एक जज़्बाती आदमी हूँ . ईश्वर और धर्म मेरे लिए पराये नहीं हैं. मैं धर्ममय हूँ , ईश्वरमय हूँ. जो इन्हें बुरा कहता है , वह मुझे बुरा कहता है . इसीलिये मुझसे बर्दाश्त नहीं होता . मैं अपनी हद तक विरोध करता हूँ .
लगातार बहुत सा वक़्त नेट पर देने की वजह से बच्चे मैथ में कम नंबर लेन लगे जबकि वे ९९ प्रतिशत लाया करते थे . मेरी आँखों में से भी पानी बहने लगा है . मैंने BIGPOND की जो नई डिवाइस ली है नेट के लिए उसकी सेटिंग में भी कुछ मुश्किल आ रही है. इस मुद्दत के दरमियान मेरे रूहानी मुराक़बों (सूफी साधना) में कमी आई है . मेरे पीर साहब का इन्तेक़ाल कुछ साल पहले हो चुका है और मैं अपने एक गुरुभाई की निगरानी में साधना कर रहा था कि नेट कि दुनिया में दाखिल हो गया और मेरी साधना को विराम लग गया . अब मैं कुछ समय जैतून के तेल में अंडे तलकर खाना चाहता हूँ , लेकिन सॉरी ताली हुई चीज़ें मैं खाता नहीं. खैर ताक़त के लिए आंवला और शहद जैसी चीज़ें भी काम देंगी . इस दरमियान मैं अपने आमाल का जायज़ा लूँगा कि कहीं खुदा की नज़र में मैं खुद ही तो मुजरिम नहीं ?

japan tsunami 2011

जो लोग मेरी मौजूदगी की वजह से कुछ परेशान थे उन्हें भी राहत मिलेगी और मिलनी भी चाहिए . चाहता तो मैं यही हूँ कि कुछ दिन नेट से पूरी तरह छुट्टी लेकर मुकम्मल आराम करूं लेकिन जो साझा ब्लॉग मैंने बनाये हैं उनसे जुड़े लोगों की सुविधा की ख़ातिर मैं पूरी तरह से चाहकर भी हट नहीं सकता. लेकिन इसके बावजूद ज़िन्दगी के जिन पहलुओं पर मेरा ध्यान कम हो गया है उन्हें मैं भरपूर तवज्जो देना मेरे लिए निहायत ज़रूरी है . सभी भाईयों और बहनों से मैं माफ़ी की दरख्वास्त करता हूँ और यह विनती भी कि   सभी भाई-बहन यह ज़रूर सोचें कि क्या वे वही काम कर रहे हैं जो कि करने के लिए उन्हें मालिक ने इस प्यारी धाती पर पैदा किया है ?

एक दिन वह इसका हिस्साब ज़रूर लेगा , इसका ध्यान रहे . हर समय उस मालिक को आप अपना साक्षी समझें क्योंकि वास्तव में वह हर समय आपके कर्मों को देख रहा है और अंत में वह आपको दंड या पुरस्कार अवश्य देगा . जापान का ज़लज़ला इसकी मिसाल है .

जाते जाते मैंने अपनी एक ताज़ा पोस्ट
http://paricharcha-rashmiprabha.blogspot.com/2011/03/blog-post_14.html
पर नज़र डाली तो बहन सोनल रस्तौगी जी के कमेन्ट पर नज़र पड़ी जोकि ईमानदारी  से भरा हुआ है . नेट जगत में ज़्यादातर  बहनें  गुटबंदी और नफरत से बहुत दूर हैं . मैं बहनों का शुक्रगुजार ख़ास तौर पर हूँ . जब कभी इंसानी शराफत से मेरा यकीन हिला तो उसे बहनों के सच्चे कमेंट्स ने ही बहाल किया है . मैं कुछ काम अधूरे छोड़े जा रहा हूँ जिनमें से एक यह नज़्म भी है :
'माँ' The mother
मैं इसे पूरा ज़रूर करूँगा , इंशा अल्लाह .
और इसे भी ...
औरत की हक़ीक़त
http://www.auratkihaqiqat.blogspot.com/

खुदा हाफिज़ , ॐ शांति ,

INTERMISSION

3 टिप्पणियाँ:

हरीश सिंह ने कहा…

अनवर भाई बहुत गलत बात है. आप इस तरह बात मत किया करें, यह अच्छी बात है की साधना के लिए वक़्त नहीं मिलता लिहाजा विराम लेंगे पर अपनों को यूँ छोड़कर जायेंगे तो साधना करेंगे कैसे, आपका ध्यान तो हम जैसे भाइयों पर रहेगा ही. लिहाजा थोडा ही वक्त सही पर इस घर को मत छोड़ियेगा. हम सभी अपने काम में बिजी है, हमारे भी बच्चे है पर यह भी एक परिवार है और परिवार को छोड़कर सुकून कैसे मिलेगा, कोई भी निर्णय लेने के लिए आप स्वतंत्र हैं पर सोचने समझाने के बाद.

हरीश सिंह ने कहा…

अभी आपको महाभारत का फैसला भी करना है. इस दायित्व से आप नहीं भाग सकते .

Mithilesh dubey ने कहा…

भगवान कर कि आप और भी ज्यादा तरक्की मिले और आपके पाठक दिन दस गुना और रात पचास गुना बढ‌े । शुभकामना

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