3/12/2011 10:43:00 pm
डॉ. नागेश पांडेय संजय
11 comments
गीत /डा. नागेश पांडेय 'संजय'
इस मन का अपराध यही है,
यह मन अति निश्छल है साथी ।
अपने जैसा समझ जगत को
मैंने हँसकर गले लगाया,
मगर जगत के दोहरेपन ने
साथी! मुझको बहुत रुलाया।
इस मन का अपराध यही है,
यह मन अति विह्वल है साथी ।
लाख सहे दुःख लेकिन जग को
मैंने सौ-सौ सुख बाँटे हैं।
सब के पथ पर फूल बिछाए
अपने हाथ लगे काँटे हैं।
इस मन का अपराध यही है,
यह मन अति कोमल है साथी।
जिसने सबको छाया बाँटी
उसके हिस्से धूप चढ़ी है।
सबके कल्मष धोने वाले
की इस जग में किसे पड़ी है ?
इस मन का अपराध यही है,
यह मन गंगाजल है साथी।
संतापों की भट्ठी में यह
तपकर कुंदन सा निखरा है।
जितनी झंझाएँ झेली हैं,
उतना ही सौरभ बिखरा है।
इस मन का अपराध यही है,
यह मन बहुत सबल है साथी।
कवि परिचय
मूलत : बाल साहित्यकार , बड़ों के लिए भी गीत एवं कविताओं का सृजन ; जन्म: ०२ जुलाई १९७४ ; खुटार ,शाहजहांपुर , उत्तर प्रदेश . माता: श्रीमती निर्मला पांडेय , पिता : श्री बाबूराम पांडेय ; शिक्षा : एम्. ए. {हिंदी, संस्कृत }, एम्. काम. एम्. एड. , पी. एच. डी. [विषय : बाल साहित्य के समीक्षा सिद्धांत }, स्लेट [ हिंदी, शिक्षा शास्त्र ] ; सम्प्रति : विभागाद्यक्ष ,
बी. एड. राजेंद्र प्रसाद पी. जी. कालेज , मीरगंज, बरेली . १९८६ से साहित्य के क्षेत्र में सक्रिय , . प्रतिष्ठित पत्र- पत्रिकाओं में गीत एवं कविताओं के अतिरिक्त बच्चों के लिए कहानी , कविता , एकांकी , पहेलियाँ और यात्रावृत्त प्रकाशित .बाल रचनाओं के अंग्रेजी, पंजाबी , गुजराती , सिंधी , मराठी , नेपाली , कन्नड़ , उर्दू , उड़िया आदि अनेक भाषाओं में अनुवाद . अनेक रचनाएँ दूरदर्शन तथा आकाशवाणी के नई दिल्ली , लखनऊ , रामपुर केन्द्रों से प्रसारित .
प्रकाशित पुस्तकें
आलोचना ग्रन्थ : बाल साहित्य के प्रतिमान ;
कविता संग्रह : तुम्हारे लिए ;
बाल कहानी संग्रह : १. नेहा ने माफ़ी मांगी २. आधुनिक बाल कहानियां ३. अमरुद खट्टे हैं ४. मोती झरे टप- टप ५. अपमान का बदला ६. भाग गए चूहे ७. दीदी का निर्णय ८. मुझे कुछ नहीं चहिये ९. यस सर नो सर ;
बाल कविता संग्रह : १. चल मेरे घोड़े २. अपलम चपलम ;
बाल एकांकी संग्रह : छोटे मास्टर जी
सम्पादित संकलन : १. न्यारे गीत हमारे २. किशोरों की श्रेष्ठ कहानियां ३. बालिकाओं की श्रेष्ठ कहानियां
संपर्क
ई -मेल- dr.nagesh.pandey.sanjay@gmail.com
11 टिप्पणियाँ:
बहुत खूब। आभार।
सुन्दर रचना
फीड से सम्बंधित एक और समस्या और उसका समाधान
सुन्दर रचना, आपने जो अपना सम्पूर्ण परिचय दिया, वह बहुत अच्छा लगा. .
'इस मन का अपराध यही है,
यह मन गंगाजल है साथी।'
जी बहुत अभिव्यक्ति । पर मन को जब गंगाजल माना है तो सारी कलुषता, क्षोभ व उद्वेग को सहजता व शान्त भाव से आत्मसात करना ही होगा ।
इस मन का अपराध यही है,
यह मन अति निश्छल है साथी ।
यही तो आजकल सब से बडा अपराध है। सुन्दर गीत।
डा.संजय जी का परिचय और रचना पडः कर बहुत अच्छा लगा। शुभकामनायें।
आपके बारे में जानकर अच्छा लगा. सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई.
संजय जी, आपका बहुत-बहुत स्वागत, एक भावपूर्ण कविता के साथ आपने जो अपना परिचय दिया उससे हम अभिभूत हैं, हम सभी इस परिवार के सदस्य है तो हमें एक दूसरे के बारे में पूर्ण जानकारी भी होनी चाहिए. आप इस परिवार में जुड़े इसके लिए आपका बहुत आभार...
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 15 -03 - 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
निश्चल मन जब अपने जैसे ही मन ढूंढता है और नाकाम होता है तो ऐसी निराशा स्वाभाविक है ...!
इतनी गहन और प्रेरक सम्मतिओं के लिए मैं सभी का ह्रदय से आभारी हूँ .
http://abhinavanugrah.blogspot.com/
नागेश जी बहुत सुदर रचना.......
सुन्दर भाव पूर्ण पंक्तियाँ ...........
''इस मन का अपराध यही है
यह मन अति निश्छल है साथी''
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