गुरुवार, 3 मार्च 2011

.डा श्याम गुप्त का एक अगीत..

 ढाई आखर....
प्रेम के ढाई आखर में ,
ज्ञान, विज्ञान, तत्व-ज्ञान व ब्रह्म-ज्ञान 
समाया है ;
प्रेम के ढाई आखर में ही समाई -
माया है |
इसीलिये तो-
प्रेम में प्रभु समाया है,
प्रभु प्रेम  बन कर संसार में समाया है ;
प्रभु ने प्रेम को-
 संसार में रमाया है ||

2 टिप्पणियाँ:

हरीश सिंह ने कहा…

बहुत सुन्दर कविता, यदि हर व्यक्ति के दिल में प्रेम समाहित हो जाय तो विश्व के सारे विवाद स्वतः ही ख़त्म हो जायेंगे. सुन्दर रचना.

saurabh dubey ने कहा…

बहुत अच्छा कविता
ढाई अक्षर प्रेम के पढ़े सो पंडित होई

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