360—30-03-11
वो दिन कभी ना भूलता
जब एक बच्चे को
हट्टे कटते पड़ोसी से
पिटते देखा
गंदी गालियाँ देते देखा
पेड़ से अमरुद तोड़ने की
सज़ा पाते देखा
इंसान को जानवर
बनते देखा
हैवान को धरती पर
शाक्षात देखा
बच्चे से ज्यादा अमरुद का
मोल देखा
निरंतर बच्चे का पिटना
याद आता है
कानों में उसका क्रंदन
पिघले सीसे सा लगता है
क्यूं उसको बचाने आगे ना बढ़ा?
क्यूं इतना कायर हो गया था?
क्या हैवान का साथ दे रहा था ?
सवालों ने सदा कचोटा मुझे
अपराध बोध ने सताया मुझे
अब भी अपने को माफ़
नहीं करता हूँ
मन ही मन रोता हूँ
कैसे सज़ा अपने को दूं
निरंतर सोचता हूँ
वो दिन कभी ना भूलता हूँ
05—03-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
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कानों में उसका क्रंदन
पिघले सीसे सा लगता है
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सुन्दर रचना आभार.
सुन्दर रचना आभार.
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