शनिवार, 5 मार्च 2011

डा श्याम गुप्त का गीत...हे मन....

      प्रेम के रंग हज़ार.....एक रंग यह  भी...
हे मन ! प्रेम के तुम आधार ॥

प्रेम की शिक्षा प्रीति की इच्छा,
तुम्हीं प्रेम व्यापार |
तुम मानस उर चित जिय हियरा ,
तुम्हीं स्वप्न संसार |
तुमसे बनें भावना सारी,
तुम्हीं प्रेम साकार |-----------हे मन ......||

रूप रंग रस भाव कार्य, सब-
क्रिया कलाप व्यवहार ,
इक दूजे के मन को भाते-
कर लेते अधिकार |
तन मन परवश होजाता जब-
तुम बन जाते प्यार |---------हे मन.......||

विह्वल भाव होजाते हो मन,
बन आंसू आधार |
अंतर्मन में बस बन जाते,
स्वप्नों का संसार |
श्याम का तन मन स्मृति वन हो-
उमड़े प्रेम अपार |
हे मन प्रेम के तुम आधार ||

2 टिप्पणियाँ:

हरीश सिंह ने कहा…

विह्वल भाव होजाते हो मन,
बन आंसू आधार |
अंतर्मन में बस बन जाते,
स्वप्नों का संसार |
-------------
sundar kavita, aabhar.

गंगाधर ने कहा…

हे मन प्रेम के तुम आधार |

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