378—48-03-11
अरुणा शानबाग
की कहानी सुन
हर आत्मा कांपती
हर दिल को दुख से
भरती
मन को व्यथित करती
आँखों में अश्रु लाती
एक वहशी की
हवस का शिकार बनी
हंसती काया जीवित
लाश में बदल गयी
लाश में बदल गयी
एक अबला पर
अत्याचार की घटना नहीं
३८ वर्षों से बह रही
दुखों की सरिता है
मानवता के खिलाफ
हैवान की कहानी है
रुकेगी या चलती रहेगी
हर मन में सवाल है
सेवा में लगी
नर्सों को नमन है
नर्सों को नमन है
जो निस्वार्थ दिल से
दुखों को कम करने की
कोशिश कर रहीं
परमात्मा से प्रार्थना है
हैवानों को नेस्तनाबूद
कर दे
कर दे
निरंतर कुकृत्यो में लिप्त
वहशियों को दोजख में
जगह दे दे
अरुणा के दुःख कम
कर दे
कर दे
जब तक जिए
बिना तकलीफ जीने दे
मरने के बाद उसे
मोक्ष प्रदान कर दे
07—03-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
2 टिप्पणियाँ:
अच्छी कविता, शुभकामना.
परमात्मा से प्रार्थना है
हैवानों को नेस्तनाबूद
कर दे .... shukamna
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