कौन जाने आदमी,
आदमी का राज क्या
शोहरत के लिए,
इज्जत की बात क्या
बेगाने होते अपने,
अपने होते बेगाने
लेकिन ये जिन्दगी है
अपनों की बात क्या
कौन जाने आदमी,
आदमी का राज क्या ।।
( 2 )
चलते हैं फूल लेकर,
कांटे भी छिपाये होते हैं
देने को देते हैं ,
भगवान को धोखा
इन्सान की बात क्या
….. कौन जाने आदमी,
आदमी का राज क्या ।।
(3)
चलते हैं साथ-साथ ये
दिल के करीब बनकर
मौका मिलते ही करते शिकार,
शिकारी बनकर
मुख के सामने तो ,
हमदर्दी की बात क्या
कौन जाने आदमी,
आदमी का राज क्या ।।
मंगल यादव, नोएडा
सोमवार, 7 मार्च 2011
गजल
3/07/2011 05:17:00 pm
mangal yadav
1 comment
1 टिप्पणियाँ:
सच कहा मंगल जी आदमी के राज़ कौन जनता है
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