सोमवार, 7 मार्च 2011

गजल

कौन जाने आदमी,

आदमी का राज क्या

शोहरत के लिए,

इज्जत की बात क्या

बेगाने होते अपने,

अपने होते बेगाने

लेकिन ये जिन्दगी है

अपनों की बात क्या

कौन जाने आदमी,

आदमी का राज क्या ।।

( 2 )

चलते हैं फूल लेकर,

कांटे भी छिपाये होते हैं

देने को देते हैं ,

भगवान को धोखा

इन्सान की बात क्या

….. कौन जाने आदमी,

आदमी का राज क्या ।।

(3)

चलते हैं साथ-साथ ये

दिल के करीब बनकर

मौका मिलते ही करते शिकार,

शिकारी बनकर

मुख के सामने तो ,

हमदर्दी की बात क्या

कौन जाने आदमी,

आदमी का राज क्या ।।

मंगल यादव, नोएडा

1 टिप्पणियाँ:

rubi sinha ने कहा…

सच कहा मंगल जी आदमी के राज़ कौन जनता है

Add to Google Reader or Homepage

 
Design by Free WordPress Themes | Bloggerized by Lasantha - Premium Blogger Themes | cna certification