शनिवार, 19 मार्च 2011

शुभ होली

कवि सुधीर गुप्ता "चक्र"
की ओर से
आपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनाएँ।

प्रस्तुत है होली पर दो क्षणिकाएँ
(1)
होली पर हमें
उनका व्यवहार
बहुत भाता है
हमारा खर्चा बच जाता है
क्योंकि
उनके चेहरे पर
रंग डालने से पहले ही
उनका चेहरा
गुस्से से लाल हो जाता है।

(2)
जब भी
होली का दिन आता है
वह भिखारी
बडा खुश हो जाता है
क्योंकि
उसी दिन तो वह
फटे-पुराने कपडे पहनकर
समाज में गले मिल पाता है ।

आइए आज के दिन हम संकल्प लें कि दूसरों के प्रति कटुता और बुराईयों को तुरंत ही त्याग कर अपनी दोस्ती को नया आयाम दें। बिछुडे मित्रों को स्मरण करें और कुछ नए मित्र बनाएँ।
शुभकामानाओं सहित आपका सहयोगी साथी
कवि सुधीर गुप्ता "चक्र"

3 टिप्पणियाँ:

saurabh dubey ने कहा…

abhut accha aapne holi per kavita likha hai

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सटीक क्षणिकाएं ...

होली की शुभकामनाएँ

हरीश सिंह ने कहा…

होली की बहुत -बहुत शुभकामनाये

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