शुक्रवार, 25 मार्च 2011

ख्वाब...






जितनी दूरी उतने ख्वाब
फिर भी ना जाने क्यों दिल उदास !
खोने की कोशिश में पाने का अहसास
दिन और रात के संग्राम में
भोर के तारे की आवाज !
फिर भी ना जाने क्यों
म्रत्यु में जीवन का आभास !
डूबती उतरती सांसों में
कहीं एक करुणा भरा आर्तनाद !
फिर भी ना जाने क्यों
गुमनाम अँधेरे में भी रास्तों की तलाश !
जितनी दूरी उतने ख्वाब
फिर भी ना जाने क्यों दिल उदास ......!!



प्रियंका राठौर

3 टिप्पणियाँ:

हरीश सिंह ने कहा…

फिर भी ना जाने क्यों
म्रत्यु में जीवन का आभास !
==================
सुन्दर अभिव्यक्ति, आभार

विभूति" ने कहा…

गुमनाम अँधेरे में भी रास्तों की तलाश !
जितनी दूरी उतने ख्वाब...bhut dil ko chune vali kavita hai...

बेनामी ने कहा…

dil ko chune wal laenain likhi hain aap ne

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