मंगलवार, 8 मार्च 2011

महिला दिवस ...............सौरभ दुबे

सर्वप्रथम महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाये ,महिला दिवस हर वर्ष 8 मार्च को विश्वभर में मनाया जाता है, इस दिन सम्पूर्ण विश्व की महिलाएँ देश, जात-पात, भाषा, राजनीतिक, सांस्कृतिक भेदभाव से परे एकजुट होकर इस दिन को मनाती हैं,श्रृष्टि रचयिता ब्रम्हा के बाद श्रृष्टि सृजन में यदि किसी का योगदान हैं तो वो नारी का है, अपने जीवन को दांव पर लगा कर एक जीव को जन्म देने का साहस ईश्वर ने केवल महिला को प्रदान किया हैं, तथा-कथित पुरुष प्रधान समाज में नारी की ये शक्ति उसकी सबसे बड़ी कमजोरी मानी जाती है,आज समाज में  नारी को एक तरफ पूज्यनीय यानि लक्ष्मी  बताते है तो दूसरी ओर उसका शोषण कर उसके देह की नुमाइश करतें नज़र आते है हद तो तब हो जाती है जब पेन, कापी, पेंसिल और बस्ते के विज्ञापन औरत की नग्न देह के माध्यम से किये जाते है. माना कि औरत के शरीर में पुरुष की अपेक्षा अधिक आकर्षण होता है मगर उसकी बेजा नुमाइश उसका दुरूपयोग है उस नारी जाति का अपमान है जिसे हम आदरणीय और पूज्यनीय मानते है, अगर हम इतिहास उठा के देखे तो समान अधिकार की लड़ाई आम महिलाओ द्वारा शुरू की गई थी ,सन् 1909 में सोशलिस्ट पार्टी ऑफ अमेरिका द्वारा पहली बार पूरे अमेरिका में 28 फरवरी को महिला दिवस मनाया गया था, 1910 में सोशलिस्ट इंटरनेशनल द्वारा कोपेनहेगन में महिला दिवस की स्थापना हुई, 1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्जरलैंड में लाखों महिलाओं ने रैली निकाली, मताधिकार, सरकारी नौकरी में भेदभाव खत्म करने जैसे मुद्दों की मांग इस रैली में उठी,इक्कीसवीं सदी की स्त्री ने स्वयं की शक्ति को पहचान लिया है, उसने काफी हद तक अपने अधिकारों के लिए लड़ना सीख लिया है, आज स्त्रियों ने सिद्ध किया है कि वे एक-दूसरे की दुश्मन नहीं, सहयोगी हैं, स्त्री सशक्त है व उसकी शक्ति की अभिव्यक्ति इस प्रकार देखने को हमे मिल रही हें
         

अन्याय का विरोध ---
     स्त्री शक्ति हमे इस बात का एहसास दिलाती है की दो या तिन दशक पुरानी महिलाओ की तुलना में आज की महिलाएं अपने उपर होने वाले अन्याय का विरोध करती हें,विरोध करने पर वह उसके नुसकान या  परिणाम से भी भयभीत नहीं होती,
वर चुनने की स्वतंत्रता ----
   कुछ समय पहले ऐसा ही होता था की माँ -बाप जिस लड़के को वर के रूप में चुन लेते थे,उसी फैसला को उन्हें स्वीकार करना पड़ता था,लेकिन अब वर चुनने में अनिवार्य रूप से बेटी की पसंद पूछी जाती हें
सहयोगी एक दूसरे के --
           आज हर परिवार में एक सास,बहू ,ननद,जेठानी ,के बिच एक स्नेह देखने को मिल रहा हें,वो अपने उपर वर्षो से लगाये हुए लांछन को मिटा दीया हें की  स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है'
शिक्षा - 
    आज शिक्षा को लेकर सहर की महिला ही नहीं बल्कि गावं की लडकिया भी शिक्षा के प्रति जागरुक हें,
               ऐसे  ही हमे तमाम उदाहरण देखने को मिल रहे हें
औरत के बिना न तो संसार का वुजूद मुमकिन है और न ही संसार की खुशियां, औरत आधी आबादी है जो पूरी आबादी की खुशियों का ख्याल रखती है, खुशियां देती है लेकिन खुद उसकी खुशियों का ख्याल सबसे कम रखा जाता है, सही मायने में महिला दिवस तब ही सार्थक होगा जब विश्व भर में महिलाओं को मानसिक व शारीरिक रूप से संपूर्ण आज़ादी मिलेगी, जहाँ उन्हें कोई प्रताड़ित नहीं करेगा, जहाँ उन्हें दहेज के लालच में जिन्दा नहीं जलाया जाएगा, जहाँ कन्या भ्रूण हत्या नहीं की जाएगी, जहाँ बलात्कार नहीं किया जाएगा, जहाँ उसे बेचा नहीं जाएगा, समाज के हर महत्वपूर्ण फैसलों में उनके नज़रिए को महत्वपूर्ण समझा जाएगा, तात्पर्य यह है कि उन्हें भी पुरूष के समान एक इंसान समझा जाएगा, जहाँ वह सिर उठा कर अपने महिला होने पर गर्व करे, न कि पश्चाताप कि काश मैं एक लड़का होती



4 टिप्पणियाँ:

shashi ने कहा…

achcha rachna

हरीश सिंह ने कहा…

सभी माताओ,बहनों को शुभकामना व बधाई . आप अपनी ममतामयी और स्नेहपूर्ण दृष्टि बनाये रखें. अच्छी समसायिक रचना के लिए सौरभ जी को बधाई .

गंगाधर ने कहा…

स्वागत, अच्छी रचना.

saurabh dubey ने कहा…

बाधाइ किस बत की आप लोग के सामने मै क्या हु

Add to Google Reader or Homepage

 
Design by Free WordPress Themes | Bloggerized by Lasantha - Premium Blogger Themes | cna certification