प्यार, प्रेम, प्रीति, जिसको व्याख्यायित करने के लिए लम्बे चौड़े वाक्यों की जरूरत नहीं . प्रेम तो सिर्फ अनुभूति है जों समर्पण के रूप में ही नजर आती है ,चाहे वह रिश्तों के बंधन के रूप में हो या रिश्तों से परे....
अहसासों में बसता है ,
निगाहों से बयाँ होता है ,
निशब्द बंधन है ,
पर रिश्तों से परे है ,
शायद -
यही प्यार है ,
जो दिखाया नहीं जाता ,
दिख जाता है ,
लम्हों में सिमट जाता है ,
रूह की झंकार है ,
जीवन की आस है ,
भावों का गुंथन है ,
हाँ -
यही प्यार है ,
जो शब्दों से परे ,
अभिव्यक्ति है समर्पण रूप ......!!
जब समर्पण रूपी प्रेम व्यष्टि से समष्टि की ओर अग्रसित होता है तो यही सामाजिक चेतना में बदल जाता है और समाज में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ एक जन आन्दोलन खड़ा हो जाता है .
चिर संघर्षरत मेरा जीवन ,
हर पल कुर्बानी मेरा जीवन !!
कभी हालात से ,
कभी खुद से ,
सामंजस्य स्थापित कर ,
चिर संतोषमय मेरा जीवन !!
फूलों को अंगार में ,
जीवन के व्यापार में ,
बदलते देख ,
चिर चिन्तनमग्न मेरा जीवन !!
शोडित की पुकार ,
क्रंदित का आर्तनाद ,
समाज का वीभत्स रूप ,
चिर समर्पणरत मेरा जीवन !
चिर संघर्षरत मेरा जीवन !!
प्रियंका राठौर
2 टिप्पणियाँ:
शायद -
यही प्यार है ,
जो दिखाया नहीं जाता ,
दिख जाता है ,
लम्हों में सिमट जाता है ,
.......................
बौधिक पंक्तिया आप के विस्तृत सोच की गहराई कई परिचायक हैं..
बधाई
bahut sundar abhivyakti, badhai.
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