शनिवार, 12 मार्च 2011

हवामहल की सड़क पर



यह कविता मैंने जब मार्च सन् 2010 में जयपुर के गोविन्द देव जी का दर्शन करने गया तब लिखा था। मैने हवामहल को भी देखा। हवामहल की सड़क पर रास्ते में एक भिखारी को देखा जो किसी विदेशी पर्यटक से भीख मांग रहा था। मुझे लग रहा आने वाला समय और बदतर होने वाला है। प्रस्तुत है उसका सजीव विवरण...

मुसीबत के मारे पिलता रहा जो
घड़ी दो घड़ी ठहरता रहा जो
बच्चा गोद का चिल्लाता रहा जो
बच्चे को !
बच्चे गाड़ी में लेकर भटकता रहा जो
काली –बदन , म्लेच्छ सा दिखता रहा जो
हवामहल की सड़क पर
विदेशी सैलानियों से कुछ मांगता रहा जो
राहगीरो की नजरों मे बचता रहा जो
गोविन्द देव जी के मंदिर तक
फेरी डालता रहा जो
अजनबी अपनों मे बेगाना दिखता रहा जो
गरीबी का पुतला
असहायों का चिराग ,बन जलता रहा जो
नैनो में आशा ,दिल से निराशा
कौन जाने भूख से बिलबिलाता रहा जो
वह गरीब विक्षिप्त सा लगने लगा है
जयपुर की गलियों मे दिखने लगा है
और हिन्दुस्तान की गलियो की क्या बात ?
अब तो शहर का हर इन्सान गरीब सा दिखने लगा है ।
- मंगल यादव , नोएडा

5 टिप्पणियाँ:

गंगाधर ने कहा…

आपकी रचना भावनात्मक होती है.

हरीश सिंह ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति के लिए शुभकामना.

rubi sinha ने कहा…

achchha laga. nice.

Kunal Verma ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति। आभार।

kirti hegde ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति। आभार।

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